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भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस
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शन की सिफारशो के आधार पर, इस क़ानून में संशोधन किया गया । भारत में मज़दूर-अान्दोलन का सुगठित रूप सन् १९१८ से प्रारम्भ होता है। साल भर के अन्दर देश भर में विभिन्न व्यवसायो में मज़दूर-सघों की स्थापना हुई । दिसम्बर १९१९ मे, बम्बई मे, कारख़ानो के मज़दूरो का एक सम्मेलन हुआ जिसमे ७१ कारख़ानो के मज़दूर प्रतिनिधि उपस्थित थे। उन्होने एक आवेदन-पत्र बनाया जिसमें दैनिक घण्टो मे कमी तथा मज़दूरी में बढ़ती की मॉगे रखी गई । मिल-मालिको ने इस ओर कुछ ध्यान न दिया। इस कारण सन् १९१९ मे मज़दूरो ने सबसे पहली बार हडताले की । तब से आज पर्यन्त कोई ऐसा वर्ष नही गया जिसमे पुतलीघरो, कारख़ानो, रेलवे या खानो के मज़दूरो ने हडताल न की हो । ३१ अक्टूबर १६२० को, बम्बई मे, अखिल भारतवर्षीय ट्रेड यूनियन काग्रेस की स्थापना, लाला लाजपतराय के सभापतित्व मे, कीगई । इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय रूप धारण किया तथा देश के राजनीतिक नेताओं तथा साम्यवादी कार्यकर्ताओं ने इस आन्दोलन में अधिकाधिक दिलचस्पी तथा भाग लेना आरम्भ कर दिया । सन् १९११ के कारख़ाना-कानून के मुख्य अंश इस प्रकार हैं--( १ ) कारख़ाने की परिभाषा मे वे भी औद्योगिक कारखाने रखे गये जो फ़सल पर चलाये जाते हैं । ( २ ) बालको और स्त्रियो के दैनिक घण्टों में कमी करके घण्टे निश्चित कर दिये गये और उन्हें रात्रि में बुनाई. के कारर्वानो में काम करने की मनाई कर दी गई । (३) मज़दूरो के स्वास्थ्य तथा कारख़ानों की जॉच के लिये नियम बनाये गये । ( ४ ) प्रौढ़ मजदूरो के दैनिक घण्टे ( बुनाई के कारख़ानों में ) अधिक से अधिक १२ कर दिये गये। सन् १९२२ मे इस कानून मे और संशोधन किये गये--( १ ) १ सप्ताह ६० घन्टो का रखा गया । (२) मज़दूर बाल को की उम्र 6 से बढ़ाकर १२ वर्ष कर दी गई । ( ३ ) छोटे कारख़ानो पर भी यह कानून लागू किया गया । । सन् १९२३, १६२६ तथा १६३१ मे भी इस कानून मे आइन्दा सशोधन किये गये । सन् १९२३ मे मज़दूर-क्षतिपूर्ति-क़ानून पास किया गया, जिसके अनुसार मज़दूरों को कारखाने में कार्य करते समय दुर्घटना से चोट लगने या