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ने संस्कृत में लिखी थी। इसका हिन्दी अनुवाद श्री खेमराज श्री कृष्णदास ने किया था और यह सन् १९२८ में बंबई के श्री वेंकटेश्वर मुद्रायंत्रालय से प्रकाशित हुई थी।

आज के आधुनिक समाज में जसमा ओढ़न लोक-कलागाथा-जीवन-शैली कुतुहल तथा जिज्ञासा की पात्र मानी जा सकती हैं पर समाज की नायिका शायद ही। किन्तु इस सब के बावजूद इनका अद्भुत जस राजस्थान के लंगा समाज की वाणी में आज भी गूंजता है और गुजरात की भवई में थिरकता है जिससे वह विस्मृति की आंधी को अपने स्नेह, मान और श्रद्धा के कारण बचाता रहा है।

जसमा ओढ़न की कथा को रंगीन पन्नों में अमर चित्र कथा सीरीज ने सन् १९७७ में अंतिम बार छापा था। आज अनुपलब्ध यह अंक हमें दसवीं कक्षा के छात्र श्री इंद्रजीत राय से मिल पाया है। इनका पता है: एच १४, कैलाश कालोनी, नई दिल्ली।

सुश्री शांता गांधी का हिन्दी नाटक 'जसमा ओढ़न' भी इस सिलसिले में देखा जा सकता है। प्रकाशक हैं: राधाकृष्ण प्रकाशन, २/३८ अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली।

इंदिरा नहर में ओढ़ियों के योगदान की और अधिक जानकारी उरमूल ट्रस्ट द्वारा आयोजित नहर-यात्रा के निमित्त तैयार की गई रिपोर्ट से मिल सकती है।

उड़ीसा के तालाब बनाने वालों की प्रारंभिक सूचनाएं हमें गांधी शांति प्रतिष्ठान की श्रीमती काजल पंड्या और श्री पारस भाई, प्रदाता, ग्राम उदयगिरि, फूलबनी, उड़ीसा से मिली हैं।

खरिया जाति की जानकारी मध्य प्रदेश शासन की पत्रिका मध्य प्रदेश संदेश के विभिन्न अंकों में बिखरी सामग्री से मिली है।

मुसहर और डांढ़ी के तालाबों से अटूट संबंध की जानकारी हमें बिहार के श्री तपेश्वर भाई और गांधी शांति प्रतिष्ठान के श्री निर्मलचंद्र से प्राप्त हुई। उत्तर में हिमाचल और पंजाब से लेकर मध्य में नासिक, भंडारा तक तालाब के सिलसिले में कोहलियों की विशिष्ट भूमिका की जानकारी सर्व सेवा संघ, गोपुरी, वर्धा के श्री ठाकुरदास बंग, श्री वसंत बोम्बटकर; सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट, ४१, तुगलकाबाद संस्थान क्षेत्र, नई दिल्ली के श्री अनिल अग्रवाल तथा श्री मोहन हीराबाई, देसाईगंज, गड़चिरौली, महाराष्ट्र से मिली है।

कोंकण की गावड़ी जाति का परिचय दिया है गोवा की संस्था 'शांतिमय समाज', पोस्ट बांदोड़ा के श्री कलानंद मणि और श्री नीरज

९५ आज भी खरे हैं तालाब