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दक्षिण के राज्यों, विशेषकर मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूरकर्नाटक के तालाबों के फैलाव, संख्या और संचालन के बारे में इन क्षेत्रों के गजेटियर, सिंचाई और प्रशासन रिपोर्टों से काफी मदद मिली। इसी कड़ी में सन् १९८३ में कर्नाटक राज्य योजना विभाग के श्री एम. जी. भट्ट, श्री रामनाथन चेट्टी और श्री अंबाजी राव द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट से भी सहायता ली गई है।

इस बीच प्रगतिशील माने गए कर्नाटक राज्य में जल का संकट लगातार बढ़ा है। अब सरकार का भी ध्यान इससे निपटने के उपायों की तरफ गया है। यह अच्छा संकेत है कि उपायों में सरकार ने तालाबों पर ही सबसे ज्यादा भरोसा किया है। सन् १९९९ में कर्नाटक सरकार ने जल संसाधन विभाग की ओर से एक नया अर्ध सरकारी संगठन बनाया है। इसका नाम है—'जल संवर्धने योजना संघ'। सन् २००२ के ५ जून को कर्नाटक सरकार ने दिल्ली के प्रमुख अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन निकालकर अपने राज्य में लोगों के साथ जुड़कर तालाबों की सफाई, रखरखाव और नए तालाब बनाने की शपथ ली है। सरकार ने स्वीकार किया है कि यह काम यहां सदियों से होता आ रहा है और ये तालाब आज भी खरे हैं।

नींव से शिखर तक

एक तालाब कैसे पूरा आकार लेता है—इसकी लगभग पूरी जानकारी हमें अलवर जिले के भीकमपुरा किशोरी गांव की संस्था 'तरुण भारत संघ' के श्री राजेन्द्र सिंह से मिली है। संघ ने पिछले १५ वर्षों में इस इलाके में ७५०० से अधिक तालाब गांव के साथ मिलकर बनाए हैं।

इस क्षेत्र में सन् १९९८ से लगातार चार वर्ष तक अकाल की परिस्थिति रही है। फिर भी इन तालाबों के कारण यहां किसी तरह का संकट नहीं आया है। जो जल स्तर लगभग १०० फुट तक गिर गया था, अब वह ३५-४० फुट तक आ गया है। क्षेत्र में पांच सूखी नदियों में वर्ष भर पानी भी बहने लगा है। इनमें सबसे प्रसिद्ध हुई है अरवरी नदी। अकाल के बीच बहती इस नदी को देखने सन् २००० में महामहिम राष्ट्रपति स्वयं भांवता गांव पधारे थे और उन्होंने यहां के काम और लोगों को सम्मानित किया था। सन् २००१ में पानी के इस अद्भुत काम को, श्री राजेन्द्र सिंह को एशिया के प्रतिष्ठित पुरस्कार मेगसेसे से भी सम्मानित किया गया है।

९१ आज भी खरे हैं तालाब