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अथवा

 

देख-देख राधा-रूप अपारा।
अपरुब के विहि आनि मिलाओल खिति तल लाबनि-सार।
अंगहि अंग अनंग मुरछायत हेरए पड़ए अथीर।
मनमथ कोटि मथन करु जे जन से हेरि महि मधि गीर।
कत-कत लखिमी चरण-तल नेओछए रंगिनि हेरि विभोरि।
करु अभिलाख मनहि पद-पंकज अहोनिसि कोर अगोरि।

 

(ख) मूवाँ पीछै जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लोह सब, (तब) पारस कौंणैं काम॥
इस तन का दीवा करौं, बाती मेल्यूं जीव।
लोही सींचौ तेल ज्यूँ, कब मुख देखौं पीव॥

 

अथवा

 

कहा नर गरबसि थोरी बात।
मन दस नाज टका दस गंठिया, टेढौ टेढौ जात॥टेक॥
कहा लै आयौ यहु धन कोऊ, कहा कोऊ लै जात॥
दिवस चारि की है पतिसाही, ज्यूं बनि हरियल पात॥
राजा भयौ गांव सौ पाये, टका लाख दंस ब्रात॥
रावन होत लंका को छत्रपति, पल में गई बिहात॥
माता पिता लोक सुत बनिता, अंत न चले संगात॥
कहै कबीर राम भजि बौरे, जनम अकारथ जात॥