पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/८९

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अध्याय ५ वा] [आग में घी मतलब नहीं ! हम यही बताना चाहते हैं कि हिंदु मुसलमानोंको यह पता न लगा कि उनके धार्मिक रीतिरिवाजोपर होनेवाला यह आक्रमण किस हद तक चलेगा। क्यों कि, इस तरह नये निर्बध बनानेका अधिकार चलाने की धुनमें अंग्रेजोंने जनताकी धार्मिक रीतिरिवाजो में हठात् हस्तक्षेप करना शुरू किया था। इन निबंधोंकी अच्छाई बुराईको तूल देनेका कोई कारण नहीं था। बात स्पष्ट है कि, धर्मशास्त्रके बताये हुए सामाजिक रीतीरिवाजों में किसी तरह हेरफेर करना हो तो हर धर्मके योग्य विद्वानोंको इकट्ठा कर उस धर्ममतके अनुयायियोंकी सम्मतिसे ही हो सकता है। पराये धर्मको सिर ऑखोंपर रख कर चलनेवाले विदेशी शासकोंको, धर्ममे दखल न देनेके स्पष्ट वचन देनेपर भी, हिंदु या मुस्लीम धर्ममें किसी तरह की योग्यता और ज्ञान न रखनेवाले विर्मियोके बहुमतके आधारपर तथा अपनी निरकुश सत्ताके अलपर, उन धर्मोंके अनुयायियोके स्पष्ट और प्रकट विरोधके होते हुए भी, धार्मिक रिवाजोमे हेरफेर जबरदस्तीसे करना, शोभा नहीं देता। फिर ब्रिटिशोंके जुलमी शासनमें और औरगजेब की धर्मान्धतापूर्ण राजनीति में क्या भेद रहा ? आज सती-बदीका निर्बध हुआ; क्या पता है, एक अन्याय लोगोंने चुपचाप सह लिया है इससे, कल मूर्तिपूजाको अपराध करार देनेवाला कानून न बन जाय ? पहला अन्याय सहन करने पर दूसरा अन्याय अवश्य छातीपर चढ़ बैठेगा। नये निबंधों के आधार पर धर्ममें दखल देनेकी इस पद्धति को काम करने देना तो औरंगजेब की तलवार के आगे गर्दन झुकाना ही था। जब की अग्रेज औरगजेब बन गये तो भारतीयो को भी शिवाजी या गुरु गोविदसिंग को खड़ा करने के बिना कोई चारा न रहा। यही उस समय भारतीय जनता की मनोगंति थी। ईसाई मिशनरियो ने भी गली गली में प्रचार कर इस अगान्ति को बढावा दिया। वे साफसाफ बकते थे कि थोडेही दिनोंमें समूचा भारत इसाई बननेवाला है। इधर हिंदु और इस्लाम धर्म की नींव खोद डालने लिए नये नये निबंध सम्मत करने का काम जारी रखा था। आगगाडी (रेलगाडी) की सुविधा देशभरम हो गयी और उसमे बैठने का पबध, छूत अछूत की रोक न होनेसे, हिंदु जातिनिष्ठा के भावों को चोट पहुँ..