पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७४

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                       अध्याय ४ था
 
                          अवध

 भारत के शासकों मे से राज्य प्रबंध के बारे मे वास्तविकता से अधिक
 पातकों के लिए हम जिन्हें दोपी मानते है उनमें डलहौसी को शामिल
 करते ह्में जरा भी संकोच नहीं होता। डलहौसी जैसे शासक सर्वश्रेष्ठ
 अत्याचारी सत्ता के मुख होते हैं। इगलड के स्वामियो की आज्ञा का पालन
 करना ही इन भारवाह्कों का काम होता है। इससे भारत में घटे अत्याचारी कामों का पूरा दोष उनके सिर मढना पुर्णतया भ्रमपूर्ण और अन्याय्य है। उसकी नियुक्ति जहॉ हुई थी वहॉ की पौरिस्थिति के अगतिक दास के नाते डलहौसी अपना काम करता था । इससे उसके अच्छे बुरे कर्मो का बहुत बडा हिस्सा, जिन्हों ने ऐसी स्थिति पैदा की उनके सिर जा पङता है । जबतक कारोवारविषयक नीति का निर्घारण इग्लैङ के बडों से किया जाता था और उसको सिर ऑखो पर रख कर जिन्हें चलना पडता था उनमें डलहौसी के समान ईमानदार सेवक शयद ही कोई होगा । डलहौसी के इग्लैड-निवासी स्वामियोंने और उनके हिंदुस्थानमें रहनेवाले सहयोगियों ने पैदा की परिस्थितिमें उत्पन्न, दोनोंके कुकर्मो के लिए डलहौसीही को मात्र दोषी मानना ठीक न होगा । सौ वर्षों पहले उनके पुरखाओं ने कडे परिश्रम से बोये बीज की राजनैतिक डकैती की फसल का मौसम अवश्य डलहौसी ने साधा । किन्तु इस प्रकर की अन्याय्य सत्ताके उत्तराधिकार की परंपरा उसका आधार न होती तो डलहौसी ऐसे कितने राज्योंपर द्खल करता ! उसके पुरखाओ के कई