पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७१

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अध्याय ३ रा] ३९ नानासाहब और लक्ष्मीबाई किन्तु वेही नानासाहब जब स्वराज्य और स्वदेश के लिए कानपुर के रणमैदान में पवित्र खड्ग सॅवार कर खडे हो गये तब उन्ही अंग्रेजोने उनपर अनगिनत हीन और अशिष्ट अभियोगों की वर्षा की। श्रीमत नानासाहब शिक्षित और बहुत सभ्य थे। राजनीतिमें बहुत रस लेते थे; राजनैतिक हलचलोपर बारीकी से ध्यान देते थे। बडे बडे राष्ट्रों की छोटी मोटी घटनाओंपर गौर करते थे, जिस के लिए अंग्रेजी समाचार पत्रोंको ध्यानपूर्वक पढते थे। हर दिन, दैनिक पत्रों को टॉड' नामक अंग्रेज से पढवा कर सुनते थे-यह टॉड आगे चलकर कानपुर में मारा गया और इसीसे इंग्लैंड और भारत में होनेवाले राजनैतिक हेरफेर बहुत बारीकी से जान लेते थे। अवध प्रात कपनीने जब्त किया । उसपर जब गहरा विवाद होता तब नानासाहब अपनी स्पष्ट सम्मति प्रकट करते कि इस चालसे अंग्रेजोने युद्ध को न्योता दिया है ।* उपर्युक्त सभी वर्णन नानासाहब के शत्रुओ के लिखे इतिहास से - इकठा कर लिया है, जिससे, ध्यान रखने की बात है कि, उन के शत्रुओं से वर्णित गुण नानासाहब के विशेष मोटे मोटे गुण होने चाहिये। क्यों कि, नानासाहब से जलनेवाले इन अंग्रेज इतिहासकारोने, अगतिक होकर आवश्यक स्थानमे ही उन सद्गुणों की प्रशसा की होगी अन्यथा ऐसा ३ कभी न करते। इस प्रशसा का बड़ा महत्त्व है । क्या कि, यह सत्यकथन लाचार हो कर कह जाने के बाद इन्ही - अंग्रेज इतिहासकारोंने, नानासाहब के स्वातंत्र्य-समर में कूद पडते ही उनके विरुद्ध में इतना उबाल निकाला हैं कि मानो ये शैतानियत भरा बदला हो। अंग्रेजी विपैली लेखनी, नाना को। 'बदमाग', 'डाकू' 'राक्षस' 'शैतान का परकाला' आदि विशेषण लिखते समय राक्षसी आनद से बौखला उठती है। खैर, इन सब विशेषणों का श्रीमत नानासाहबपर लाग होना मान भी लिया जाय, फिर भी नानासाहब स्वदेश और स्वराज्य के लिए लडे और झूझते हुए लहूलुहान हुए यह एक ही बात, हम भारतियो के हृदय में, उन की प्रिय स्मृति सदा । चार्लस् बॉलकृत इंडियन म्यूटिनी खण्ड १ प, ३०४