पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/६३

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अध्याय ३ रा] ३१ [नानासाहब और लक्ष्मीबाई का बीज पाया जाता है। वे बच्चे जब नन्हे थे तभी से उनके रोम रोम में 'स्वराज्य के लिए प्रेम, आत्माभिमान की गहरी सूझ, और पुरखाओं का योग्य अभिमान मिद गया था। स्वराज्य शक्ति ने जब पुणे से उठकर ब्रह्मावर्तमें अपना अड्डा जमाया तब नानासाहब, लक्ष्मीबाई, रावसाहब तात्या टोपे जैसे छोटे छोटे पौधे वहाँ अपने छोटे छोटे कोपलों को बाहर • धकेल रहे थे। उनसे एक पौधा थोडे ही समयमें झॉसी के उपवन मे · बोया गया । स. १८४२ में झॉसी के गगाधरराव बाबासाहब महाराज से छवेली का गठबधन हुआ और इस तरह वह छवेली झॉसी की महारानी -लक्ष्मीबाई बन गयी । वहाँ राजसभा में वह बहुत जनप्रिय हुई और उसने अपनी प्रजा के प्रेम तथा भक्तिपूर्ण राजनिष्ठा को कैसे प्राप्त किया इस का इतिहास आगे चल कर मालूम होगा। स. १८५१ में बाजीराव द्वितीय मर गया। अच्छाही हुआ। उस की मृत्युपर एक भी ऑसू बहाने की आवश्यकता नहीं है। क्यो कि, स. १८१८ में अपना राज्य गॅवा कर, यह पेशवा घराने का कुलबोरन, दूसरे राजाओ के राज्य छिन जाने में सहायता देते हुए जीवन बिता रहा था। ईस्ट इडिया कपनी के दिये हुए आठ लाख की प्रतिवार्षिक पेन्शन से इसने काफी बचाया था और उसे उसी कपनीके नोटोमे लगा रखा था। फिर अफगानिस्तान से जब अंग्रेजोंने युद्ध शुरू किया तब इसने अपने बचाये हुए धनसे पचास लाख रुपया अंग्रेजोको कर्जा देकर उन की सहायता की। थोडेही दिनोंबाद फिर अंग्रेजों का सिक्ख राष्ट्र के साथ युद्ध जारी हुआ। और सब को आशा (और केवल अंग्रेजोंको डर था) थी कि ब्रह्मावर्त का यह मराठा, सिक्खों का साथ देकर अंग्रेजो के सामने डट जायगा । जब लगभग समूचा हिंदुस्थान औरगजेब के विरुद्ध युद्ध करने में मशगूल था, तब, कहते हैं, पजाब में गुरु गोविदसिंह की हार होनेपर मराठों से सहाय प्राप्त करने के लिए आप महाराष्ट्र में चले आये। अब तो उत्तर भारतमें जाकर, मराठों को सहयोग देने का अधूरा वचन और काम पूरा करने का मौका आया था। किन्तु, हाय । बाजीरावने एन वक्तपर सब गुड गोबर कर डाला। इसी बाजीने-शिवाजी के पेशवाओ के इस कुलदीपक ने-अपनी गॉठ को काटकर अंग्रेजों की सहायता के.