पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/६२

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सवारी के तेन जानवर को रोकने के कप्ट से उसकी गौर छवि ओर ही आरक्त गौर हो उठती | अब नाना १८ सालका ऑर लक्ष्मी ७ साल की थी |ठीक बचपन से इनमें गाढी मित्रता पैदा हो चुकी थी| एक ही अनादि शक्ति के ये ढो रुप थे और एक ही महाऩ साधना के लिए उनका जन्म हुआ था, जिससे उनका एक दूसरे के प्रति आकपण विद्युत़ परमाणु के समान प्राकृतिक ही था|इस समय ब्रहावर्त में १८४७ के त्रतियुध के तीन महत्वपुर्ण व्यक्ति बढ रहे थे-नानासाहब, लक्ष्मी और तात्या टोपे | आगे अभिनीत होनेवाले महाभीषण नाटक के तीन प्रमुख अभिनेताओं की रूपरचना( मेक-अप्)करने के लिए ही,मानो, विधाताने ब्रहावर्त की रगशाला का निर्माण किया था | कहते हैं, हर भाईदूज के दिन, नाना और लक्ष्मी- दो ऐतिहासिक भाई-बहन, दिवाली का समारोह संपन्न करते थे | सोनें की थाली में नीराज्ंन रखकर अपने हाथों नाना की आरती उतारनेवाली मोंहक किन्तु तेजस्वी छवेली का चित्र हम अपने मन:चक्षुओं के सामने खीच सकते है | एक ही कामधेनु के बच्चे, एकही कान के कोहीनूरो,तुम भाईबहन एक दूसरे को प्रेम से तोहफे दो | हम भी उसी भारातमाता के कोखसे जन्मे है | हमारी भी नसो में वही खून बह रहा है | हम सब भाई बहन है; हर क्षण हमारे लिए, दिव्य भाईदूज के समान है | अपने ह्र्दय को सुवर्णपात्र बनाकर उसमें प्रेम की दिव्य ज्योति को जगमगाओ! लक्ष्मीभाई नाना साहब की मंगल् आरति उतार रही है; इस प्रकार के दिव्य अवसर-जो इतिहास ही को अदभुत आकर्षक कहानियों से भी आधिक अदभुत रमणीयत्व प्राप्त कर देते है- संसार के किसी अन्य राष्ट्र के इतिहास में शायदही मिलेंगे | हे भारतमाता! जबतक ऐसे भाई बहन तुम्हारी कोख से जन्म पाते है तब तक तुम्हें कोई भय नहीं है | जब तक ऐसे दिव्य भाईदूज के प्रसंग और उनकी उनसे भी बढकर स्फूर्तिप्रद कहानियाँ जीवित है ; तब तक किसकी हिम्मत है कि तुम्हारी ओर आँख उठाकर देखे? और यदि कोई ऐसी दुष्ट चेष्टा करने की धृष्टता करे तो विशवास करो कि कानपुर का भाई और झॉसी की बहन, ये दोनों भाईदुज का वह महान समारोह फिरसे शुरु करेंगे | नाना साहब और मनूबाई के बचपन ही में उन के आगामी बडप्पन