पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५६३

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. . . . . - BEife E १ अध्याय ३रा समारोप ज्वालामुखी कुछ समय क लिखे तो शान्त हो गया है। पाठक पूठेंगे, फीरोजशाह मौर रावसाहब का क्या हुआ? ___ तात्या के विदा लेने के बाद रामसाइब मेक महीने तक पूरे जीवट से लडते रहे और जब कोमी चारा न रहा था, तब भेष बदल कर जमल में चले गये; किन्तु तीन वर्षों के बाद अन्हें पकड लिया गया और २० अगस्त १८६२ को कानपुर में फॉसी दिग गया। फिरोजशाह भी असी तरह भेष बदल कर घूम रहा था फिन्न सौभाग्यसे भारत से बाहर चले जाने में सफल हो कर औरान में करबला में जा बता । १८५७ की क्राति के बारे में स्थान स्थान पर चर्चा कर चुके हैं। क्या, सिद्धता पूरी होने के पहले ही क्राति का असमय विस्फोट हुआ था? नहीं, हम जैसा नहीं मानत । ५७ के अत्थान में जो योजना और तैयारियों की गयी थीं, वैसी तो बडी बडी यशस्वी क्रातियों में भी नहीं पायी जाती । जब सैनिकों की पलटन पर पलटन, बड़े बड़े प्रबल राजा महाराजा, सरकारी नौकरी क अची श्रेणी के अधिकारी, पुलीस, और नगर अक कर के बलवा करने का अभिवचन दे कर आगे आते, तब तुरन्त विद्रोह करने के लिभे कौन हिचकिचायगा ? और सदा से यह अनुभव है, कि किसी कार्य के प्रारंभ ही