पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५७

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अध्याय २ रा] '५१३ [पूर्णाहुति awayam यमुना पार कर कौनसे करिश्मे कर दिखाये और मार्ग तय करते हुने तात्या को कैसे मिल गया, आदि बातों का विवरण अब स्थलाभाव के कारण नहीं दिया जा सकता। फीरोजशाइ तथा शिंदे के दरबारी मानसिंग-मेक क्रांतिकारी सरदार-को जा मिलने के लिये तात्या टोपे तथा रावसाहब कमी भिडन्तों के बाद १३ जनवरी १८५९ को अिंदगढ पहुंचे। फिर ये चार क्रौतिनेता आगामी कार्यक्रम पर चर्चा करने लगे। अंग्रेजों की इलचलों की छोटी से छोटी और पक्की खबर तात्या को मिला करती थी, जिस से चारों ओर से फिर अंग्रेज दबाव डालने की चेष्टा करने की खबर पाते ही वह घडल्ले के साथ मार्ग तय कर देवास पहुँचा। अब अग्रेजों के पंजे से असे किसी तरह छटकने का रास्ता न रहा था। यश की आशा तो रच भर भी न रही थी, जिससे नयी साहसी योजना बनाने का असे बिलकुल अत्साह न था। सो, वह अपनी थकी सेना को अंग्रेजों के पंजे से कैसे छुडाता! अंग्रेज सेनापति अपनी मूंछों में बल देते हुमे कह रहे थे 'देखें, अब बच्चा कैसे छटकता है।' फिरोजशाह, मानसिंग, तात्या टोपे अवं रावसाइब अिन चार क्रांतिनेताओं को पूरी तरह फॉस कर अपने जाल को अंग्रेज खूब कस रहे थे। अब काहे का छुटकारा! . १६ जनवारी १८५९ को तात्या, रावसाइब तथा फीरोजशाह युद्ध समिति की विशेष बैठक में आगामी योजना की चर्चा कर रहे थे, अितने में, बाहर कुहराम मचा हुआ सुनायी पडा तात्याने ताड लिया कि अब अग्रेजों ने पूरी तरह दबा लिया है, अिस विचार से असने सिर अठाकर झांका तो पता चला, कि तात्या की छावनी में गोरों ने तहलका मचा दिया है। " तात्या मिल गया, अिस प्रकार की आनंदपूर्ण चिहाइट गोरे सैनिकों के मुंहों से हो रही थी। है ! सहसा वह आंनद लुप्त क्यों हो गया? 'अरे, कहाँ है ? अभी तो यहीं था । दौडो, सैनिको, दौडो देखे 1" यही हो हल्ला अब सुनायी पडता था। गोरे सोजीरोने कोनाकचोना छान मारा किन्तु व्यर्थ-तााया टोपे गायब था।