पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अस्थायी शान्ति ४९२ [चौथा खंड स्वराज्य की दासी है। यह अकल्पनीय अकता, भारतमाता की भक्ति अपने निष्ठावंत सपूतों में प्रेरित करती है और अस से देशभर में अलौकिक वीरता चमक अठती है! .x. १८५८ के नवंबर में अिंग्लैंड की महारानी ने वह सुप्रसिद्ध घोषणा की और पहले की भविष्यवाणी सच निकली-ठीक सौ वर्ष के बाद कंपनी के , शासन का अन्त हुआ हाँ, किन्तु अिंग्लैंड की महारानी की सत्ता अस के ' स्थान में चढ ही बैठी ! अग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध करनेवालों को तब क्षमा मिलनेवाली थी, जब वे हथियार डाल दें। शुस घोषणा में यह वचन दिया गया था, कि अन की संपत्ति जन्त नहीं होगी; यहाँ तक कि अन के अपराधों की जॉच भी न होगी।* - - .x. सं. ५१ । चार्लस बाल कहता है.-" अपर्युक्त घोषणा के बाद भी अवध का झगडा बडा अजीब-सा रहा। मिन सभी बागियों की टोलियों को जनतासे अपूर्व सहानुभूति तथा आदमियों की कुमुक मिला करती थी। ये बागी बिना किसी रसद के कूच कर देते, क्यों कि हर स्थान के लोग अन्हे खिलाते पिलाते। ये अपना सामान चाहे जहाँ, बिना प्रहरी के, छोड जाते, क्यों कि लोग अपने आप अस की रक्षा करते । अिन बागियों के पास अंग्रेजों की हर हलचल के समाचार घटे घंटे पर पहुंचते रहते, जिस से अपनी तथा अंग्रेजों की दशा को वे पूरी तरह जान लेते । हर खाने के मेन के आसपास खडे खानसामें बागियों से गुप्त सहानुभूति रखनेवाले थे, जिस से हमारी कोजी योजना गुप्त न रह पाती; असे तो अंग्रेजों के हर खेमे में बागियों के गुप्तचर खडे होते थे। बागियों पर अचानक हमला नहीं किया जा सकता था। कोभी कौतुक बन जाय तो दूसरी बात है। क्यों कि अक मुंह से दूसरे मुंह तक पहुँचनेवाले समाचार हमारे घुडसवारों को मात कर देते ।" खण्ड २, पृ.५७२ ___ * सं. ५२। यह संदर्भ विशेष महत्त्वपूर्ण है, क्यों कि १८५७ के किसी अितिहासमें यह जानकारी न मिलेगी। और तो और, लंदन-टासिम्स के लिओ भेजे गये श्री. रसेल के संवाद-पत्रों में भी भिस का जिक्र नहीं मिलेगा । अर्थात्