पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५२५

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अध्याय १ ला ४८१ [रसरी दृष्टि से - mamma अिस्तरह बल टूट गया और फिर किसी प्रकार की हलचल न दिखायी दी। अपर्युक्त नौकर अक सरकारी कर्मचारी थी और अस के भेजे हुआ विद्रोही पत्र पुणे तथा कोल्हापुर के सैनिकों के पास पाये गये थे। अिस सबूत पर असे तोपसे झुडा दिया गया। सातारे में रंगो बापूजी तो पहले ही से सरकारी कृपा से अतर चुका था। कोल्हापुर में विद्रोह फैलाने के अपराध में रगो बापूजी के पुत्र को अग्रेजों ने फॉसी दिया था। अिसी समय सातारे के राजपरिवार के दो व्यक्तियों को सीमापार कर दिया गया था। जिस सातारे के सिंहासन की सेना में असने अपनी पूरी आयु लगा दी थी असी की असी बुरी गत देखकर स्वामिभक्त रंगो बापूजी सातारा छोड चला गया। असे पकडा देने के लिअ पारितोषिक घोषित करने पर भी अंग्रेजों की किसीने सहायता न की। स्वदेशभक्त रंगो बापूजी का क्या हुआ अिस की जानकारी आजतक किसी को न मिली। सिन्हीं दिनों मेलफिन्स्टन नामक मेक सुयोग्य गोरे को बम्बी का गवर्नर बना दिया गया। अपने पति की शाति का जो दायित्व असपर था असे अपनी क्षमता से निबाइकर भी असने राजपूताने की ओर सेना भेजी। किन्तु बम्बभी के बलवे को समय पर दवा देने के कान में जो चतुरता और फुर्ती दीख पडी वह श्री. फारेस्ट की थी। बम्बी केवल आलसू सुखासीनों और राष्टदोही .. कायरों का घर था। अिस दशामें राष्ट्रीय क्रांति की ज्वालाओं घधकने के योग्या ज्वालाग्राही अंतःकरण थे केवल अन सैनिकों के, जो वहाँ डेरा डाले पडे थे जिस बात को लाड कर फारेस्टने अन सैनिकों पर कड़ी नजर रखी ! बलवे के लिओ दीपावलि के दिन निश्चित हो चुके थे और असके अनुसार सिपाहियों की भात सभाओं होने लगीं, जिनमें फारेस्टने अपने खास पिठुओं को घुसेडने की चेष्टा की किन्तु सिपाहियों की दक्षतासे असकी अक न चली। फारेस्ट स्वयं कभी आक्षण, तो कभी और किसी का भेष बनाकर लोगों में, सामूहिक भोजों में भी. पहुँच जाता । निदान, असे पता लगा, कि गंगामसाद नामक अक सज्जन के .