पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५१२

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खडी हरावल को तोड़ने का जतन छोड़ दिया और काले नाग के दमिक को छेड़ने के बदले वह दूसरी ओर गया।

जिस तरह आज का दिन समाप्त हुआ १८ दिनांक का सबेरा वो हुआ। आज अंग्रेजों ने तनतोड़ हमले करने का निष्वय किया था। सभी दिशाओं सें किले पर उन्हों ने घाबा बोला और प्रयत्नों की पराकाष्ठा की। कल जनरल स्मिथ को हटना पड़ा था;आज नयी कुमक के साथ उसी झाँसीवाली सेना पर वह टूट पड़ा। हयू ऱोज को लगा,कि उस का वहाँ होना नितान्त आवश्यक है;इसी से झाँड़ीवालों पर चढ़ाई करनेवाले सैनिकों के साथ वह स्वयं रहा। रानी भी अपनी सेना के साथ सिध्द थी। प्राणों की बाजी लगा कर वह अपने कर्तव्य पर डटी हैं। रानी ने उस दिन कामदार चंदेरी पगड़ी लगयी थी;तमामी चोगा और पायजामा पहना था। मोतियों का एक हार उन के गले में पड़ा था। उनका अपना घोड़ा उस दिन कुछ थका हुआ सा मालूम पड़ा; सो, एक नया घोढा लाया गया। रानी की वे दो सखियाँ जब शरबत पी रही थी तब संवाद मिला कि अंग्रेजी सेना बढ़ ऱही है। रानी एकदम अपने खेमे से दौड़ पडि-तीर भी इतनी फुर्ती से नही छुटता है,मेघो से बिजली भी इतनी वेग से नही दमकती, सामने हाथी को आते देख उस पर झपटनेवाली सिंहनी अपनी माँद से इतनी जोश से नही उछलती। रानी ने घोड़ा दौड़ाया,तलवार उठायी और शत्रु पर घाबा बोल दिया। एक अंग्रेज लिखता है' तत्काल वह सुंदरी रानी मैदान मै उतरी हयू रोज के व्यूह डट कर प्रतिकार किया। अपनी सेना के आगे रहकर बार बार वह हमले और घनघोर मांर काट करवाती। यधपि उस की सफों को चीर कर अंग्रेज जाते और उस की सेना की पाँतियाँ पनली हो रही थी; फिर भी रानी पहली हरावल में दिखाई पड़ती थी,जो अपनी टूटी पाँतियो को फिर से सगठित कर अतुल धैर्य का परिचय देती थी। किन्तु यह सब किस काम का था? हयू रोज ने स्वयं अपने उँट- दल के जोर पर आखरी पंक्ति तोड़ ही दी और तो भी रानी अपने स्थान में डट कर खड़ी थी।"