पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५०४

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अग्निमलय] ४६२ [तीसरा खंड तोपें छीन ली हैं। नदियों को तैरकर, पहाड टीले लांघ कर, जंगलों, दरों, अपत्यकाओं में शत्रु का सफाया कर, असीम प्रदेश जीत कर अपने राष्ट्र की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगाये हैं ! तुम वीर तो हो ही, किन्तु अनुशासन का पालन भी तुमने बडी टेक से किया है । क्यों कि, विना अनुशासन के साहसी वीरता का कोी मूल्य नहीं होता। अत्यंत कठिन दशा में ( फुसलाय तथा यंत्रणाओं में तमने अपने प्रमुख अधिकारियों की आज्ञाओं का ज्यों का त्यों पालन किया और आज्ञाभंग या अदण्डता का तनिक भी बरताव न किया । जमुनासे ठेठ नीचे नर्मदा तक तुमने अपने अद्वितीय सैनिक अनुशासन से प्रचंड विजय प्राप्त की है।" यह वीरस्तुतिपूर्ण और प्रभावी वस्तृता को प्रसिद्ध कर सर ह्यू रोज स्वास्थ्य के कारण सैनिक सेवा से निवृत्त हुआ। और अस की विजयी अंग्रेज - सेना भी शत्रु की पूरी हार होने से अब छुटकारे की सॉस भर कर आराम. की अपेक्षा करने लगी। . अिन्तु अितने ही में तुम आराम का खयाल कैसे कर सकते हो? तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई जो जीवित हैं! ब्रिटिश सैनिको, तबतक तुम्हे आराम कैसा ? और यदि तुम अपनी अिच्छासे खडे न होंगे तो यह गवालियरवाली सेना तुम्हे मैदान में खदेडने के लिये सिद्ध है ! कालपीसे छटक कर सभी क्रांति-नेता आगामी योजना बनाने के लिये गोपालपुर में जमा हो गये। वास्तव में जिस समय आशा के कोसी आसार थे नहीं। नर्मदा से जमनातक और जमना से हिमाचलतक सारा प्रदेश अंग्रेज फिरसे नीत चुके थे। क्रांतिकारियों के पास सेनावल न था; न थे मढ किले। और बारबार हार होने से अन्हें नयी सेना खडी करना भी असम्भव सा हो गया था। किन्तु तात्या टोपे जो जीवित था, बस, यही पर्याप्त है ! रानी लक्ष्मी भी वहाँ थी ही; तात्या गोपालपुर को लौट आया था। लोगों में खबर यह झुडी थी कि वह अपने पिता से मिल आया है। खैर, खबर झूठ हो या सचे, किन्तु अितिहास अिस का कोणी प्रमाण नहीं देना । अब हर रोजने अपना धूर्त दाँव,