पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५००

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अभिप्रलय ] ४५८ [ तीसरा खंड wwwwwwwwwwwww अच्छी तरह अनुशासित था । सर ह्यू रोज के सेनानी नियुक्त होने के पहले गरम चर्चाओं और मतभेदों का बाजार गर्म रहा। बस, किन्तु, अक बार अस की नियुक्ति हुी कि अस का मत ही सब का मत था। जो भी आज्ञा वह दे ठीक मानी जाती; और न भी हो तब भी असपर अमल होता । किसी साधारण सेनानी की गलत आज्ञा पर, यह आज्ञाकारित्व और व्यवस्थात्मक वीरता के साथ, सैनिक अमल करें तो भी वे सफल होगे । अिस के विपरीत सुयोग्य सेनानी की सुविचारपूर्ण आज्ञाओं भी विपत्ति और परामय का कारण बनती हैं, यदि सैनिक अपनी सनक को अधिक महत्त्व दें, शासन में अकता न हो और आज्ञाकारित्व न हो! नहीं तो पंचगाँव में जो पराजय हुी वह कभी न होती। झाँसी से सर इयू रोज के आते ही कॅचगाँव में क्रांतिकारियों से मुठभेड हुी। दोपहर की चिलचिलाती धूप गोरे सह नहीं सकते यह जान कर क्रांतिकारियों के मेक आज्ञापत्र में लिखा था:-"सबेरे १० बजे के पहले फिरंगी से कोजी मुठभेड न करे; सदा ही दस के बाद लडाली हो।" अिस बडी चतुर आज्ञा पर अस दिन अमल किया गया । जैसा कि अन्य स्थानों में हुआ था, दस बजने के बाद जहाँ लडाभी शुरू होती अंग्रेजों के छावनी में कुहराम मच जाता; आज असा ही हुआ। और तिसपरभी कॅचगाँव में क्रांतिकारियों की हार हुी और अन्हें कालपी को इटना पडा । जिस सराहनीय ढंग से वे पीछे हटे, जिस संगठित रूप से वे मोर्चे छोडते गये, शत्रुने भी अस की अत्यंत प्रशंसा की है।* किन्तु सं. ४९ "फिर बागियोंने वह काम किया जिस की प्रशंसा अन के शत्रुओं को भी करनी पडी। पीछे हटने का कार्यक्रम अन्होंने जिस तरह पूरा किया अस का जोड पाना असम्भव है। अंग्रेन अफसरोंने अन्हे जो पाठ अच्छी तरह सिखलाये थे अन को ठीक तरह ध्यान में रखा गया था। किसी प्रकार की जल्दबाजी, अव्यवस्था तनिक भी न थी; पीछे की ओर भागने का नाम नहीं । रणमैदान के संचलन की तरह सब कुछ व्यवस्थित था। दो मील