पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९६

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अमिप्रलय ] . . [ तीसरा खंड वाले अंग्रेज और रानी के १०१५ सवारों में प्राणघातक भिडन्त हुआ। जो बचे वे लक्ष्मीदेवी की रक्षा के लिये आगे बढे। घायल बॉकर तथा अस के साथियों ने पीछा करने से मुँह मोड लिया। भारतमाता की तलवार विजयी और चमकती हुभी आगे बढी। आकाश में सूर्यदेव और पृथ्वी पर लक्ष्मीदेवी, दोनों आगे बढ रहे थे। दोपहरी हुमी; किन्तु रानी न सकी । साँझ की छायाों लम्बी होने लगी। सूर्यदेव थक कर क्षितिज के पीछे छिपे, किन्तु रानी ? नहीं, वे बढ़ती ही गयीं। तारे, झिलमिलाये । अन्हों ने देवी को कल रात जैसी देखी थी वैसी पायी। आगे बढती हुी, बेतहाशा घोडेको फेंकती हुनी । निदान, आधी रातमें, रानी लक्ष्मी कालपी पहुंची। १०२ मीलों का अंतर तय किया और वह भी बॉकर जैसे आदमी के साथ झूझकर, पीठ पर मेक बालक का बोझ सम्हाल कर ! वह घोडा रानी को कालपी में सुरक्षित पहुंचाने ही को प्राण धारण किये हुआ था । क्यों कि, अपनी अनमोल निधि को अतार कर वह लडखडाया और स्वर्ग सिंघारा । छः आदमियों को तुरन्त अस की अन्त्यक्रिया में लगाया गया। वह घोडा रानी का बड़ा प्यारा था। जिस घोडेने असा पवित्र बोझ जितनी भीमानदारी से पहुंचा दिया, अस का स्मरण अवश्य रहना चाहिये, अस की स्मृति सदा के लिअ प्यारी रहेगी। ___ रानी ने सबेरे तक आराम किया । सबेरे रानी और रावसाहब पेशवा का हृदयवेधक साक्षात् हुआ। दोनों को अपने अन पुरखाओं का स्मरण हुआ जिन्हों ने असम्भव को सम्भव बनाने के बड़े काम किये और जिन के वंश में होने का सौभाग्य दोनों को प्राप्त था ! अन्हे अिस बात से प्रेरणा मिलती थी कि मराठों का झण्डा अटक पर लहराने का कारण था-शिंदे, होळकर, माय. कवाड, बुंदेले और पटवर्धन स्वराज्य के लिअ अपने पाण न्योछावर करने को सिद्ध थे। असी झण्डे और असी स्वराज के लिसे, जिसके लिओ अनके पुरखाओं ने खून बहाया था, शुरू हुमे युद्ध को अन्ततक निचाहने का दोनों ने प्रण किया। स्वदेश को भ्रष्ट करने की चेष्टा करनेवालोंसे वह युद्ध लड़ा जा रहा था। सो. पूरा बल लगा कर वह युद्ध जारी रखने का दृढ संकल्प किया ।