पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९२

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अमिप्रलय ] . [ तीसरा खंड आनेवाला ! ले. बोनस और वीर ले. फॉक्स ! तुम मरना चाहते हो? तुम्हारी मुराद पूरी होगी। मरो फिर ! बडी कठनाभी से चढ़े हु अिन चार वीरों को गिरते देख निसानियाँ भी काँपने लगी । अंग्रेजी सैनिकों के भार से वे लडखडा कर टूट गयीं। अंग्रेजों ने पीछेट की तुरही बजायी। सेना पीछे गयी; हर सिपाही हर चट्टान की ओट लेकर छिपते हुओ भागा।x प्रमुख द्वार पर जिस तरह डट कर प्रतिकार हुआ। किन्तु दक्षिण बुर्ज पर वह कौन कराह रहा है ! हो सकता है, नीच विश्वासघातने मोर्च द्वार गॅवाया होगा। हॉ, दुर्भाग्यसे सच है कि अग्रेजों ने देशद्रोहियों के बल पर असे जीता है-औसा कहा जाता है-और बुर्ज पर चढ कर फुर्ती से आगे बढ रहे हैं। अस दिन सब के मन में अक मात्र भाव था-मारेंगे या मरेंगे। मेक बार शहर में अंग्रेजों ने मार काट की धूम मचा दी। मेक के पीछे अंक मोर्चा कब्जे करते गये; कल, आग, विध्वंस का बाजार गर्म रहा- वे ठेठ राजमहल तक पहुँचे । राजमहल पर दखल करने पर हजारों रुपये लूटे गये, पहरियों को मार डाला गया, भिमारतों की भीट से मीट बजा दी गयी। निदान, हाय, झाँसी शत्रु के हाथ में चला गया। ___परकोटे पर खडी रानी ने क बार झाँसी पर दृष्टि डाली। दक्षिण दरवाजे के पास बने भीषण प्रसंग का धूणित चित्र अस की आँखों में तर गया। शत्रु के स्पर्श से अस का झाँसी अपवित्र हो गया। अस की आँखों से क्रोध की चिनगारियाँ अड रही थी। क्रोध से रानी पागल हो अठी। अत ने अपनी तलवार सँवारी, अपनी हजार पंधरसी सैनिकों की सेना को साथ लिया और किले को चल पडी । अपने बच्चे को छेडनेवाले पर भी शेरनी जितनी पुर्ती से नहीं झपटती । दक्षिण द्वार के पास असने गोरों को देखा और वह अन पर झपटी; फिर " तलवार से तलवार भिडी, दोनों शत्रु दल क्षणभर में ओक दूसरे में मिल गये, 'दे दनादन, शुरू हुआ; बहुत गोरे मारे गये; बचे x सं. ४७ देखो लो कृत सेंट्रल अिंडिया. पृ. २५४.