पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८३

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अध्याय १० वॉ] ४४१ [रानी लक्ष्मीबाई अब स्वराज का नगाडा गंभीर घोष कर रहा था । गत ११ महीनों से अिस ममकनेवाले गभीर घोष ने सारे बुंदेलखण्ड का वातावरण, जो अब स्वाधीनता के तेल से दमक रहा था, भर दिया था, अिस ' नगावे का साथ कालपी से तात्या टोपे की तो दे रही थी। अिस तरह, विध्य से जमनातक ब्रिटिश सत्ता का कोमी चिन्ह नहीं दीख पड़ता था-कोसी अस का नाम नहीं लेता था । ब्राह्मण, मौलवी, सरदार, जागीरदार, सैनिक, पुलीस, राजा, राव, शाहुकार, दहाती लोग-इर किसी की बस, मेक ही माँग थी-स्वाधीनता! और अिन हजारों मावाजों को अक सुर में मिलाने के लिओ झाँसी की रानी लक्ष्मीनाभी ने अपने मीठे किन्तु दृढ स्वर में कहा- 'मेरा झाँसी नहीं मिल सकता, जिस की हिम्मत हो आजमा ले ।' __ संसार ने जैसे दृढ 'नहीं' को बहुत कम सुना है। अब तक अदार और महामना भारत से बारंबार यही भनि सुनायी पडती 'मैं दंगा।। किन्तु आज यह विलक्षण चमत्कार हुआ-दृढ ध्वनि तेजस्वी मुख से निकली ‘में नहीं दूंगी ! मेरा झाँसी नहीं दूंगी।' , हे भारतमाता ! काश; तुम्हारे रोम रोम से यह ध्वनि गूंजती ! मिस अनपेक्षित दृढता से फिरंगी चौंक पडा और ५००० सैनिकों तथा काफी तोपों के साथ अिस विद्रोह की गहरामी नापने और असे शान्त करने के लिये सर ड्यू रोज चल पडा। १८५८ के प्रारंभ में, हिमालय से चिंध्य तक के समूचे प्रदेश को क्रांति. कारियों के हाथों से फिर से जीतने की सैनिक योजना अग्रेजों ने बनायी थी। यह मदेश दो हिस्सों में बाँटा गया और हर अक पर दखल करने प्रचंड सेना भेजी गयी । सर कम्बल भिलाहाबाद से गंगा जमना की अत्तर की और अपनी बडी सेना के साथ बढा; दोआब जीता, गगापार कर लखनभू को नष्ट-भ्रष्ट • किया। बिहार के विद्रोह को दबाया; बनारस के आसपास तथा अवध में बागियों को हराया; सब कातिकारियों को रुहेलखण्ड में, जहॉ अन्तिम मुठभेडे हुभी, भगाया और अत्तर के प्रदेश को क्रातिकारियों से मुक्त किया, भादि बातों का