पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७७

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अध्याय ९ वा] अध्याय . ४३५ ४३५ मौलवी अहमदशाह आये, मौलवी का सिर तोड लिया, असे अक कपड़े में लपेटा और १३ मीलोंपर होनेवाले शाहजहाँपुर की बिटिश छावनी को दौड गया। वहाँ गोरे अघि कारी खाने के कमरे में खाना खा रहे थे। राजा अंदर गया, असने अपने बोझ को, जिसे वह तोहफा समझ रहा था, खोला और मोरे अफसरों के पॉवों के पास अस सिर को, निस से अब भी रक्त चू रहा-था, फेंक दिया। दूसरे दिन अिन सभ्य अग्रेजों ने, अन के साथ, अन्ततक, वीरोचित पराक्रम से झूझनेवाले कट्टर शत्रु का सिर चौकी के द्वारपर लटका रखा और पोवेन नरेश को अिस घृणित राष्ट्रद्रोही करतूतपर ५० हजार रुपयों का पारितोषिक दिया। मौलवी अहमवशाह की मृत्यु के समाचार भिंग्लैड पहुँचे तब 'अत्तर भारत का ब्रिटिशों का भयंकर शत्रु खतम हुआ' कह कर अग्रेजों ने सतोष की सॉस ली। * मौलवी कद में अॅचा और अिकहरे बदन का होने पर भी मजबूत और गठा हुआ था। आँखें बडी और भेदक तथा भौहें काली थीं, नाक नोकदार तथा चेहरा भरा हुआ था। अिस धीर मुसलमान की जीवनीसे यही पाठ मिलता है, कि अिस्लाम के मसलों पर विश्वास तथा भारतभूमि पर गहरी अटल भक्ति दोनों में न बेमेल है, न वैर; मेक मुसलमान असाधारण धर्मप्रेम के रहते हुओ भी नहीं बल्कि असी के कारण-साथ साथ भारत का लाडला अत्यत श्रेष्ठ नेता हो सकता है, जो अपना सब कुछ अपनी मातृभूमि पर न्योछावर अिस लिसे करता है, कि संसार में अक स्वतत्र और स्वाधीन राष्ट्र होने के नाते सम्मान प्राप्त करे। सच्चा श्रीमानदार मुसलमान अपनी मातभमि में पैदा होने और अस के लिओ कट जाने में गर्व अनुभव करेगा। · · क्रांतिकारी नेताओं के गुणों का वर्णन, अतिशयोक्तिसे तो असभव किन्तु वास्तविक और ठीक तरह करने में भी लालमटूल करनेवाला अग्रेज , अितिहासकार मॅलेसन, भावना के बहाव में अंग्रेज होने की बात भूल कर, लिखता है- मौलवी अहमदशाह अक असाधारण व्यक्ति था। विद्रोह के काल में अस के सैनिक नेतृत्व की योग्यता का परिचय कभी प्रप्तगों में मिला है, .

  • होम्स कृत हिस्टरी ऑफ दि भिंडियन म्यूटिनी (पृ. ५३९.) ' '