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अध्याय ९ वाँ ] ४२९ [मौलवी अहमंद्रशाह

कर, रहे सहे मुट्ठीभर सैनिकों को साथ लेकर तथा स्वराज का झण्डा अक- लंकित अूँचा रखकर लडते लडते नरपतसिंह किलेसे निकल गया।

भिन्न भिन्न सेनाबिभागौं ने अबघ के कांतिकासिरों की पहले अवध की अुतर में और फिर रुहेठखणंड में खदेडनै पर, स्वयं प्रधान सेनापतिंने सब सेनाओं को मिलाकर रुहेलखण्ड पर चढाअी करने की सिद्ता की । अिस समय सब क्रांतिकारी नेता शाहजहपुर मे जमा थे । कानपुस्वाले नानासाहब तथा मौलवी अहमदशाह भी अनुमे थे। बिटिश सेनापतिने भिन पकडने की कअी बेचाेेेअें विफल कर ये दोनों विजयी वीर पहले के समान निश्चिंत सब ओर धूम रहे थे ।अब अिन सभी शत्रुओं को अेक साथ जाल मैं बाँधने- योग्य स्थानों अुन्हें जमा हबेदेख, अपनी गातिविधि का तनिक भी सुराग कानो कान भी न देने के भरोसे, सर कँन्वेलने समूचे शहर को सब ओरसे घेर लिया । दुर्भाग्य । पंछी कब के अुड गथे थे । कँम्वेल को अधिक दुःख अिस बात का था, कि भिन्न भिन्नओं से चारों औरसे घिरेहोने परभी ठीक अुसी की सेना की ओर से ये दोनों नेता छटक गथे थे।

उिस तहर शाहजहॉपुर का पासा अुलटा पडा देख, कमसे कम बरेली को सीधा करने के लिये कॉम्बेलने अुस ओर प्रयाण किया ।चार तोपें और कुछ सैनिक शाहनहॉपुर में छोड, १४ मअी को निकल, बरेली से अेक दिन के मुकाम पर आ पहूँचा । खान बहादुर खीं अब भी क्यों विराजमान था ।दिल्ली ओर लकनअू के पतन के बाद भी स्वाधीन अिस कांतिदल के नगर मैं झुण्ड के झुण्ड क्रांतिकारी प्रतिदिन आ पहुँचते थे।दिल्ली के शाहजदा मिजी फीरोनशाह,

सी्मांत नानासाहेब,मोलवी ,अहमदशाह,बेगम इजरत महल,ीमंत वाला-साहेब,राजा तेनसिंह तथाा अन्य नेता रहेलखण्ड का झण्डा वहॉ शान स लहरा रहा थे।अिसी से बरेंली को नष्ट करने का बीडा कँम्भेल ने अुठाया 

था।किन्तु कातिकारियों के अभी प्रसिद्ध हुअे घोषणा- पर् के अनुसार वृक-युद्ध की नीति पर चलने का नष्य होने से का्ंति-नेताओं ने यह निश्चिय किया