पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४६६

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अध्याय ९ वाँ मौलवी अहमदशाह लखन के पतन से रुहेलखण्ड और अवध में क्रांतिकारियों का संगठन करने योग्य अक भी संगठनकेन्द्र शेष न रहा । शत्रु के आक्रमक दवाव ने बिहार और दोआब के क्रांतिकारियों को दवाते हु अन्हे रुहेलखण्ड और अवध के दिनोदिन संकीर्ण होनेवाले रणक्षेत्र में जमा कर दिया। सब ओर से अिस प्रकार दबोचे जाने तथा कोली भी बलवान आश्रयस्थान न रहनेसे क्रांतिकारियों को अपना पुराना युद्धतंत्र-खुले मैदान में बहादरी दिखाते हुओ घमासान लडाअिाँ -लडना छोडकर अब वृकयुद्ध का अवलंब करना पडा । यदि मारंभही से वृकयुद्ध से काम लिया जाता तो विजय के अनगिनत अवसर अनके हाथ लगते । किन्तु, सबेरे का भूला शामको घर आ जाय तो भी अच्छा है । हाँ, विजय की आशा तो अब नहीं के बराबर थी, फिर भी मेक भी क्रांति केन्द्र से पीछेहट की या शरण लेने - की भनकार भर न सुनायी दी । अलटे, वृकयुद्ध का अवलंबन कर झगडा जारी रखने के निर्धारसे अवध और सहेलखण्ड के क्रांतिकारियोंने प्रांतभर में .ओक घोषणापत्र प्रकट किया-'खुले मैदान में शैतानों की स्थायी सेनासे सामना मत करो, क्यों कि अनुशासन में वह तुम से श्रेष्ठ है और अस के पास बडी तोहै, किन्तु असकी गतिविधि पर निगरानी रखो, नदी के घाटों पर पहरा रखो,