पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४६३

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अध्याय ८ वा] ४२९" [कुंवरसिंह और अमरसिह ही घावा बोल दिया । आरा के अंग्रेजों की हार के समाचार मिलने पर बिगेडियर डगलस तथा जनरल लुगार्ड के नेतृत्व में गंगा के अिस ओर पडी सेना ने गंगा पार होकर, अमरसिंह से भिडन्त की। जब अंग्रेजोंने क्रांतिकारियों को घेरना शुरू किया तब अमरसिंहने भी औरही चाल चली । शत्रु की जीत होती देख कर, वह अपनी सेना को अलग अलग टोलियों में बाँट देता और अन्ने फैला कर भैदान से हट जाता और अन्हें निश्चित समय तथा स्थान पर मिलने की सूचना देता, जिस से शत्रु किसी तरह पीला न कर सकता था। अंग्रेजों के सामने यह समस्था आ पडी कि जिस अदृश्य शत्रु से कैसे लडा जाय । ज्यों ही ब्रिटिश मानने लगते कि वे ही हर बार विजयी होते हैं, त्योंही अमरसिंह की सेना पहले के समान बलवान् तथा कार्यशील किसी और जगह दिखायी देती। नंगल के मेक छोर से खदेडी जाय तो वह दूसरे छोर पर अधम मचाती और , वहाँ से भगाने फिर पहली जगह पर कब्जा कर लेती । निदान, परेशान हो कर निराश तथा अपमानित बिटिश सेनापति लुगार्ड जून १५ को सेवानिवृत्त होकर • आराम के लिओ झिंग्लैंड चला गया; अस की सेना छावनी को लौट गयी। - और अिस से अिशारा पाकर अमरसिंह मैदान में विजयी सेनापति बन कर आ डटा । अिसी समय क्रांतियुद्ध में गया की पुलिस को शामिल कराने में नेताओं को सफलता मिली। . फिर अंग्रेजों को झूठा सुराग देकर अमरसिंह आरा पर चढ आया और शहर में प्रवेश कर गया। जिस से क्या होता है ? अब तो वह जगदीशपुर की राजधानी में प्रवेश कर रहा है । जुलामी समाप्त, अगस्त बीत गया। सितंबर चुक गया; जगदीशपुर के बुपिर, संपूर्ण स्वाधीनता का अनुभव करनेवाली जनता का, विजयी ध्वज लहरा रहा था और प्रजाप्रिय राणा अमरसिंह सिंहासनपर विराजमान था । बि. डगलस और अस की ७ हजार सेनाने अमरसिंह को नष्ट करने का बीडा अठाया था। यहाँ तक, कि किसी तरह राणा अमरसिंह का सिर लानेवाले को बडे बडे अिनाम घोषित किये गये । अब अन्होंने जंगल तोंडकर सडक बना ली थी। नाके नाके पर ब्रिटिश सेना