पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४५६

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भागमलय ४१४ ' [तीसरा खंड विभाजन कर, राजधानी की रक्षा का भार सौंपा गया और पहले की तरह दृढनिश्वय तथा निर्भीकता से असने फिरसे भीषण रण का प्रारंभ किया। फिर संग्राम छिडा। जगदीशपुर में कुंवरसिंह विद्युत्वेग मे तथा साहस के साथ चुसा था, जिस से जगदीशपुर पर कडी निगरानी रखने के लिये ही आरा के पास खास कर डेरा डाले ब्रिटिश सैनिकों का ध्यान जाने के पहले ही वह आरापर चढ आया थी। शत्रु के विस चकमे से आरा का कमांडर लेग्रांद आग बबूला हो गया। पूरबी अवध में डेरा डाली हुश्री अंग्रेज सेना को झांसा देकर यह वागी राजा जगदीशपुर में जाता है, और अपने 'पूर्ववैभव से फिर राज भी करने लगता है! कैसी अच्छृखलता! और वह भी पास होनेवाली ओक ब्रिटिश सेनापति की छाती पर मूंग! दीसते हो! क्या दिठगी ! अभी आठ महीने भी नहीं हुआ जनरल आयरने असे जिस जंगल से भगा दिया था न ? जो हो, आयर के समान ले गाँद भी भिस बागी राणा का आखेट कर असे अवश्य भगा देगा। सो, २३ अप्रैल को ४०० गोरे सैनिक तथा २ तोपों के साथ ले ग्रॉद ने अमागे जगदीशपुर पर हमला किया। अब कुँवरसिंह भिसका मुकाबला कैसे करे ? गत की महीनों से यह बूढा वीरवर छिनभर भी आराम न करते हुझे मैदान में डटा हुआ था। अस के सैनिकों को शातिपूर्वक भोजन या सुख से नींद प्राप्त करने की फुरसद ही न मिली थी। पूरबी अवध में अभी, संहारक घमासान युद्ध से निपट कर, कल कुँवरमिह यहाँ पहुँचा है और उसकी सेना को पूरा अक दिन का थाराम भी नहीं मिला है। स्वयं अंग्रेजों के सरकारी विवरणों से मालूम होता है-'अस की सेना, बिखरी हुश्री बेतरतीब, शस्त्रास्त्र अपर्याप्त और बिना तोपखाने के पंगु बन मयी थी।' अधिक से अधिक अंक सइन सैनिक अस के पास शेगे और अन का सेनापति ८० वर्षोंका का बूढा कुंवरसिंह काटे हुझे हाथ के प्राणघातक प्रसंग से दुबला था। जैसी दशा में ले ग्राद के नेतृत्व में ब्रिटिशों के ताजा दम तथा अनुशासन मे मो हुसे दस्तों की चढाी तोपों के साथ हो रही थी, जिस से लडाओ का परिणाम पहले से कूता आ सकता था। मिस पर विश्वास से शहर से डेढ मील पर होनेवाले जंगल में ब्रिटिश दस्ते घुस पडे ! सुन की तोपें धडधडाने लगी