पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३०

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३८८ अग्निप्रलय] [तीसरा खंड कि ये नमींदार और राजा हमारे विरुद्ध अठने का कारण केवल अनकी व्यक्तिगत शानि नहीं हो सकता।.x. - और मिसी से भितिहासकार होम्सने स्पष्टतया मान्य किया है, कि जिन रानाओं तथा जमींदारोंने अिस स्वातंत्र्य-समर को छेडा और निबाहा, वे व्यक्तिगत स्वार्थ की अपेक्षा अधिक अदात्त सिद्धान्तों से अभिभूत थे।" जैसे कभी गना और मामूली जमींदार थे, जो किसी ठोस शिकायत के बिन ही सरकार के नियंत्रण के विरुद्ध अबल पड़ते थ, मिस की हस्ती ही अन्हे याद दिलाती रहती कि वे अक नित राष्ट्र के निवासी है ...... जो विदेशी सरकार अन लाखों प्रजाजनों पर चढ़ बैठी थी असके लिो तनिक भी निष्ठा अनके मनमें न थी। विद्रोह के समय में हिंदी जनता के बरताव का मूल्यमापन करनेमें अक बात कभी न भूलनी चाहिये कि हमारे नैसे विदेशी शासकों के प्रति सहानुभूति होना मानवी स्वभाव के विरुद्ध होता। सच्ची निष्ठा तो देशभक्ति के साथ सम-जीवी हो सकती है। जो लोग हमारा शासन लाभकारी मानते थे वे, या तो, हमारी सहायता करते, या चुप रहते। किन्तु अनमें भी जैसा अक भी मानव न था जो, यदि असे विश्वास हो जानेपर कि अंग्रेजी शासन अखाडा जा सकता है, हमारे विरुद्ध खड़ा न हो जाता । "* • विदेशी शासन के नाम से ही जिनका खून खौलने लगता था और अपने सर्वस्व को तिलांजलि. दे कर जो स्वराज का झण्डा अँचा रखने के लिये रण में कूद पड़े थे, अन राना महाराजाओं, जमीदारों तथा तालुकदारों में जैसा मेक व्यक्ति था जो श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ होते हुझे भी लखनझू के पूजनीय सिंहासन की रक्षा के हेतु सब से पहले समरांगण में अतरा था। यह असाधारण व्यक्ति बिजली के वेगसे गत चार महीनों से समरांगण में तथा कौन्सिल-डॉल में मेक सा सक्रिय चमक रहा था। ४ सर जेम्स आशुटराम के पत्रके जवाबमें लॉर्ड कॅनिंग का पत्र. * होम्स कृत सिपाय वॉर.