पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२९

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अध्याय ७ वॉ] ३८७ लखन का पतन कभी नहीं टिक सकते, अिस त्रिकालाबाधित सत्य की प्रतीति-मिन सब भव्य और अदात्त सिद्धान्तों का भान अस समय के लखन के जमीदारों तथा धनिकों को हुआ था। ये जमींदार केवल अंग्रेजों के लादे भालगुजारी-कर के कारण असंतुष्ट होने से नहीं भडक झूठे थे। स्वदेश को परायों का पापी स्पर्श होने ही से अन का क्रोध भडक अठा था। यह केवल हमारा ही मत नहीं, अस 'समय के गवर्नर जनरल की भी यही सम्मति है; आगे का अद्धरण मिस का प्रमाण है। " तुम सोचते हो कि अवध के राजा और जमींदार केवल अिस लिसे बागी बने कि हमारी मालगुजारी की नयी पद्धति से अन्हे व्यक्तिगत हानि अठानी पडी। किन्तु गवर्नर जनरल का मत है, कि अिस बातपर गौर करना चाहिये। चांदा, बोअिंजा और गोंडा के राजाओंसे बढकर किसी ने कमाल का द्वेष न दिखाया होगा। चादा नरेश का मेक भी गाँव नहीं छीना गया था; अलटे असके खिराज को कम कर दिया था । बोअिंजा के साथ भी अदारता से बरताव किया गया था। गोंडा के ४०० गाँवों से केवल तीन जब्त किये गये थे और अस के बदले में १० हजार रुपये कर कम कर दिया था। अवध के नवाब के स्थान पर अग्रेजों का शासन मानेसे नौपाडे के - युवक राजा को तो सब से अधिक लाभ पहुंचा था। हमारे शासन सम्हालते ही - असे सहस्र गाँव दिये गये और अन्य सब के हकों को मार कर असकी माता को असकी पालनकी बना दी गयी थी। किन्तु शुरू ही से असकी सेना लखनझू में हमारे साथ लड रही है। धूरा के राजा का भी हमारे शासन से काफी लाभ हुआ है, किन्तु असी के लोगों ने कॅप्टन हुजे पर हमला कर अप्स की स्त्री को गिरफ्तार किया और लखनशू के जेल में बंदी बनाया।" “अश्रफ वख्श खाँ-नवाबने अिस तालुकदार को बहुत सताया था-- को तात्काल असके राज का संपूर्ण स्वामी बना दिया गया. था। किन्तु विद्रोह के प्रारंभ से अस को हमारे प्रति द्वेष अनहद था। अिन सब मामलों से स्पष्ट है