पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२८

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अग्निपलय] ३८६ [तीसरा खंड . तोपें खोकर भी वहाँ के रक्षकों ने अपने जौहर दिखाये और फॅक्स को हार मान कर हटना पड़ा। अबतक असने कमी लडाअियॉ लडी और सफल भी कर दिखायीं और अब के जिस अनचाही हार से भी अस की कुछ बडी हानि न थी। किन्तु अस समय अंग्रेजों के पक्ष में अनुशासन और नेतत्व के दायित्व के विषय में अितना कडा ध्यान दिया जाता था कि, फंक्स की अबतक की सफलता के बावजूद सर कॅम्बेल ने नयी महत्त्वपूर्ण चढासी की योजना में कमांढरें की तालिका से अस का नाम हटा दिया ! अब लखन पर चढ आनेवाली ब्रिटिश सेना के भिन्न भिन्न विभाग अक दूसरे के पास आ रहे थे। कॅम्बेल की विशाल सेना कानपुर से पश्चिम के रास्ते आ रही थी, जहाँ फॅक्स और जंगबहादुर की सेनाओं पूरव से बढ रही थीं। ११ मार्च के पहले ही दोनों सेना मिली और अस 'अपराधी' लखन की धज्जियाँ अडाने को आगे बढ़ीं। __ 'अपराधी ! हॉ, अपराधी, और अभागा भी! अपनी और परायों की तलवारों के वार होते हुझे भी अस लखनझू ने क्या सिद्धता की थी ? गत वर्ष के नवबर से-जब कम्बल तात्या को हराने कानपुर दौड गया था-ठेठ मार्च तक हरमेक व्यक्ति प्राणपन से लखन के रक्षार्थ तथा शत्रुसंहार के लि कटिबद्ध हुआ था। लखनमें गर्व से लहरानेवाले स्वतंत्रता-झण्डे के नीचे राना से रॉक तक हर अक, जान हथेली में लेकर लड रहा था। वहाँ की राजा और जमींदार जैसे थे, जिनकी, अग्रेजी आक्रमण नीति के कारण व्यक्तिगत, कुछ खास हानि न हुी थी। वरंच कुछ लोगों की तो पाँचों थी में थीं। किन्तु, राष्ट्र के लिअ जो हानिकर होता है, वह अन्तमें व्यक्ति को कभी लाभकारी नहीं हो सकता, यह महान् सिद्धान्त; व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये स्वदेश के प्रति अपने कर्तव्य को भूल न जाने का दृढ निश्चय; जान जाय पर आनपर आँच न आयवाला राजपूती बाना, और बिना स्वतंत्रता के, आत्माभिमान, मनुष्यत्व, सभ्यता आदि महान गुण :