पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२४

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अग्निप्रलय ] ३८२ [तीसरा खंड झुकाये जा सकते हैं। लॉर्ड कॅनिंग की आज्ञा पर अमल करने के लिये कॅम्बेलने सब से पहले लखनझू की खबर लेने की ठानी। पूर्वनिश्चय के अनुसार सीटन, वाल पोल और प्रधान सेनापति कॅम्बेल ने फतहगढ में लगभग १० से ११ हजार सैनिक जमा किये थे। दो आम के सभी महात्वपूर्ण मोर्चों पर कुछ दस्ते, प्रांत ' में शांति रखने के हेतु, रखे गये। आगरा से भा आये हुओ सैनिको से सख्या में और वद्धि ही। अितनी बड़ी सेना लेकर कम्बल फतहगढ़ चल पडा।अिस बडी सेना का विवरण अंग्रेज अितिहासकार यों देते हैं.-" अनाव तथा बुंदी के रेतीले प्रदेशोंने जिस तरह की प्रचंड सेना, घोडे, तोपरखाना, पैदल सेना, रसदसे लदी गाड़ियों, नौकर चाकर, छोटे बडे खेमे आदि शायद ही देखे होंगे । सारा प्रबंध सुंदर था । १५वीं गोरी तथा २ री हिंदी पैदल पलटनें; ४ थी गोरी और २४ वी हिंदी । रिसाला रेजिमेंट; ५४ वी गरनाल और ८० वी सादी तोपें-अितना सेनासंभार मिछा था । अिस बडी सेना के साथ लखन को दण्ड देने के लिअ सर कम्बल कानपुर से चलकर गंगापार हुआ। ___ गंगामाी ! अवध को खंडहर बनाने के लिअ चढ आनेवाली गोरी सेना को देख लो । मानी अवध ! तुमपर ढहनेवाली अिस भीषण विपत्ति से दबकर, क्या तुम स्वयं नष्टभ्रष्ट हो जाओगे ? अग्रेज गंगापार हो गये कि, बस, अवध की बन आयी-यही भय अवध में समाया था। अपने असख्य गाँवो को भस्मसात् करने और अपने मदिर सुरंगसे अडाने, मूर्तियों को नष्टभ्रष्ट करने के लिओ अंग्रेज आ रहे हैं जिस , बात को अवध ने पहले ही भॉप लिया होगा । * किन्तु सबसे अधिक दुख असे अिस बात का था कि जंगबहादुर अपने नेपाली दस्तों के साथ चढा आ रहा है। जिस अक ही दुःखपूर्ण घटन से अनकी आँखोंसे आँसू टपके, असका मुख पीला पड़ गया। अवध असा

  • रसेल की डायरी पृ. २१८.