पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४१४

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अग्निप्रलय] ३७२ [तीसरा खड अनकी कुछ न चली थी। किन्तु अिस विचार से वह रंच भी पस्तहिम्मत न हुआ था । अयोध्या के पास गंगा का पुल अडा कर अंग्रेनों को गंगापार जाना असने असम्भव कर रखा था और वहाँ तोपें भी तैयार रखी थीं। किन्तु शत्रु तात्या का दाँव ताड गया और तोपों की मार सहन करते हुसे भी २० नववर के पहले ही वह अयोध्यासे कानपुर आ गया। असी समय तात्या के ही शिविर में नानासाहब और कुँवरसिंह का आगमन हुआ था। अिन माननीय नेताओंने यह निश्चय किया था, कि कानपुर छोड कर हट जाने की अपेक्षा अंग्रेजों के प्रधान सेनापति का युद्ध में मुकाबला करना ही विशेष मानाई है। और तात्या टोपे के समान स्वाभाविक कर्तत्वशील वीर नेता प्राप्त होनेपर तो* अपनी योजना में किसी प्रकार का बदल करने का कोसी कारण न था। तात्याने अपनी सेना का बायाँ पासा, कानपुर और गंगा के बीच के सुरक्षित टापू में, रखा था। अस के सभी इलचलों का केन्द्र तो कानपुर ही रहा । असका दाहिना पासा गगा की नहर के किनारे दूरतक फैला हुआ था और नहर के पुलपर काबू करता था । अिस समय सैनिक-शिक्षा-प्राप्त १० हजार सैनिक अस के पास थे। अन्हीं के वलपर असने १ और २ दिसंबर को कॅम्बेलसे मुकाबला किया। दिनांक २ को तो कम्भेल के डेरेपर ही तो चलायीं । अन्त में, दिनांक ६ को कॅम्बेल को क्रांतिकारियों का खुला आव्हान स्वीकार करना ही पडा, अिस लिसे अपने सात सहस्र सैनिकों की सराहनीय व्यूहरचना कर, असने अंग्रेज प्रधान सेनापति के सैनिक अड्डेपर हमला करने की गुस्ताखी करनेवाले बागियोंपर धावा बोल दिया । क्रातिकारियों का दाहिना पासा सुरक्षा की दृष्टिसे ढीलासा मालूम होने से कॅम्बेल ने असी ओर पहला हमला किया। और क्रांतिकारियों का ध्यान दूसरी ओर आकर्षित करने के लिये दिनांक ६ के समरे से ही अंग्रेजों ने उनके बॉों पासे पर तोपों की मार चालू

  • मलेसन्स अिडियन म्यूटिनी खण्ड ४, पृ. १८६.