पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९९

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अध्याय ५ वॉ] ३५५ [लखन Mam छोडती रेसिडेन्सी में प्रवेश करनेपर, असने समझा कि जितनी विजयों, रक्तपात, भिडन्ते के बाद क्रातिकारियों के चंगुलसे कमसे कम अंग्रेजी सत्ता को वह मुक्त कर सका है। किन्तु अब, परिस्थिति को आँखों देखकर, वही प्रश्न वह दुहराने लगा, जो गंगा किनारे असने अपने मन से पूछा था ! " लखनम के लिअ सचमुच मै क्या कर पाया हूँ ! मैने केवल अन्हें सहायता पहुंचाया है ? " इवलॉक अपनी सेना के साथ रेसिडेन्सी में आया, निस से घेरा अठना' तो दूर क्रांतिकारियों ने नयी और पुराना दोनों सेनाओं को थेरा। तब हरओक कहता--" इवलाक हमारे लिअ क्या लाया, मुक्ति या मदद ?" ___ हॉ, यह केवल मदद थी। 'पाडे' की पकड से लखन के गोरों को बचाने विलाँक और आसुटराम जैसे सेनानियों के नेतृत्व में की लडाभियो के बाद आयी हुी यह सेना घेरा झुठाने में अक्षम रही और जोरोंसे अदर युस पडते ही स्वय भी घेरे में बंद हुी ! अग्रेज मानते थे कि इवलॉक के पहुंचते ही 'पाठे' की सेना भाग खडी होगी । किन्तु भारत ने देखा कि यह गोरों का सपना काफूर हो गया। 'पाडे' की सेनाने न लखन छोडा, न अग्रेजोसे समझौता करने की चेष्टा की; वरच क्रांतियुद्ध की धधकती ज्वालाओं से और अस्तेजित होकर हॅवलॉक के अंदर घुसते ही पब मोचौपर दखल किया और घेरा पक्का कर दिया। रेसिडेन्सी में घुसने की गडबडी में गोरों का मेक दस्ता आलमबाग के पास पीछे रह गया था; वह अपनी मुख्य सेनासे मिलने से वंचित रह गया. 'या। जिस तरह, अस दिन के घमासान युद्ध में मार्ग मार्ग में बने खूनके पोखर सखने के पहले ही अंग्रेजी विजय तथा अपनी पराजय की परवाह रंच भी न कर, निराश या इतोत्साह न होते हुभे, अस स्वातंत्र्यमेमी लखनअने फिर अक बार अवधका अंग्रेजी सत्ता के शैतान को कर रखा; मानो, मेक बोतलमें बंद कर रखा। जिस स्वातव्य-समर में केवल लखन की अंग्रेज सेना ही को अिस • तरह, अपनी दृढ और निश्चित नीति से, 'पाडे' वालों ने सकट में नहीं फंसाया शा। दिल्ली का पतन हो चुका था; फिर भी घेरे में पडी इंक्लॉक की