पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३७८

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अग्निप्रलय ] ३३२ [ तीसरा खड की शरण में जाने की सोचने लगा। यह मिलाहीबख्श हद दर्ने का पाजी था । असने अंग्रेजों को सब वारदातों की खबर दी। कॅप्टन इडसन आ कर खडा हुआ । जान बचने का आश्वासन मिलने पर बादशाह शरण में आ , गया; अंग्रेजों ने राजमहाल में बंदी कर रखा। तुरन्त अिलाहीवख्श और मुनशी रजबअली दो हरामखोर-दौडते हुमे आये और अंग्रेजों को बताने लगे, 'शाहजादे तो अब भी हुमायूँ के मकबरे में छिपे है।' क. छाडसन फिर से दौडा; शाहजादे पकडे गये, शरण आनेपर मेक, गाडी में बिठाकर शहर में ले जाया जा रहा था। यह बारात जब शहर में आ पहुँची तब हाडसन गाडी के पास जाकर चिलाया 'अंग्रेज औरतों और बच्चों को कत्ल करनेवालों को मौत ही की सजा ठीक है ।" राजपुत्रों के शरीर पर से सब आभूषण अतार लिया गया और अन्हे गाडी से बाहर घसीटा गया । फिर अन अभागे राजपुत्रों को खडा किया गया। तुरन्त हाडसनने तीन गोलियाँ चलायीं और तीनों राजपुत्रों का काम तमाम कर दिया । तैमूर के वंश की अन्तिम कोपलें अिस प्रकार हाडसन ने नष्ट कर डाली। किन्तु अन राजवशीयों को मार कर अंग्रेजों का प्रतिशोध शान्त न हुआ। ' मरणान्ताति वैराणि- मरजाने तक वैर-का विचार तो जगली लोग मी मानते हैं। किन्तु, हाँ, हाडसन भी अस सिद्धान्त पर चलता, तो सभ्य अंग्रेजों के कीने की अमानुषता का परिचय कैसे मिलता ? अिन राजपुत्रों के मृत शरीर थाने के सामने फेंक दिये गये। कुछ समय तक गिद्धों ने अन की दावत खाने के बाद सडी गली लाशों को घसीट कर नदी में फेंक दी गयीं । हे काल देवता ! तुम कैसे परिवर्तन करा देते हो ! सम्राट अकबर के राजवंशीयों का अन्तिम धार्मिक संस्कार करने के लिओ दिलीमें कोी न मिला और अब सिक्खों को विश्वास हुआ कि अन के प्रों में वर्णित भविष्यवाणी सच्ची और प्रत्यक्ष हो गयी ! किन्तु किस रूप में ? किस अर्थ में और परिणाम क्या निकला ? अिस के बाद अकथनीय लूटमार और हत्याकाण्ड का प्रलय दिल्ली में शुरू हुआ। अस का विवरण मिलने पर लॉर्ड अलफिन्स्टन, सर जॉन लॉरन्स को, लिखता है, “ घेरा अठा लेने के बाद हमारी सेनाने जो क्रूर अत्याचार