पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३६४

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आग्निप्रलय ३२० तीसरा खंड nand की तरह, फैलने का मौका ही देना था। दिछी जीती जाती, तब भी सिपाही बाहर फैल जाते ! किन्तु हार कर बैठे दिल से दिल्ली के बाहर हो जाने में और घेरा झुठ जाने से कुछ बौखला कर अग्रेजों पर टूट पड़ने में बड़ा अंतर था । अंग्रेज सेनापति सि रहस्य को अच्छी तरह जानता था; किन्तु निराशा, निरुत्साइ तथा विद्रोहियों के भयंकर हमलों के भय से, असे लगने लगा था, कि घेरा अठा लिया जाय । अंग्रजी सत्ता का सत्यानाश होने का समय पासही आया था। किन्तु, सचमुच, अंग्रेजों के सौभाग्य से ठीक अस समय बेर्डस्मिथ जैसा साहसी तथा प्राणों की चिंता न करनेवाला, धीरज से संकटों का सामना करनेवाला अधिकारी वहाँ आ पहुंचा। जहॉ अन्य सभी अधिकारी पीछेहट की भाषा बोल रहे थे, बेर्डस्मिथने धडळे से कहा, कि 'मेक चप्या भी दिल्ली की पकड ढीली न होनी पावे ! जमराज के पाश के समान अस के गले में जो फंदा फंसाया है वह वैसाही कसा हुआ रहना चाहिये ! दिछी का घेरा झुठाया जाय, तो पंजाब गँवामेंगे, हिंदुस्थान गंवा बैठेंगे और साम्राज्य हमेशा के लिअ इव जायगा ।" अिन शब्दों से कुछ अत्तेजित हो कर ब्रिगेडिअर विल्सनने निश्चय किया, कि दिली जीतने तक धेरा नहीं झुठायेंगे । अिघर 'क्रांतिकारी भी असाधारण जीवट से घेरा तोडने की चेष्टा करते थे। छोटी छोटी टोलिया बनाकर वे अचानक अग्रेजों के दाहिने पासे पर हमले करते और अंग्रेज अनका सामना करे सि के पहले शत्रु के, हो सके अतने, लोगों को कलकर लौट भी आते। पीछा करनेपर मजबूर कर दिशा मुलाने भुलाते अपने घेरे में फैस अग्रेज सैनिकों पर विद्रोहियों की तोपें अनिवर्षा करतीं। क्रांतिकारियों ने मिस चाल से, अितने गोरों को मार डाला कि अस संख्या को गिनकर विलसनने विशेष आज्ञा दी, कि किसी दशा में सिपाहियों का पीछा न किया जाय । मिस तरह अंग्रजों की सेना, क्रांतिकारियों की धोखे की चालसे घट रही थी, तब पंजाम से आनेवाले घेरे के लिअ आवश्यक तोपखाने की ओर सेनापति की ऑखें लगी । अत्तर भारत के तारघर, अगिनगाडी तथा डाक जैसे यातायात' के साधनों का, क्रांतिकारियों ने, पूरा फैसला कर डाला था, जिस से सुन के