पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३५१

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अध्याय ३ रा] ३०७ [बिहार पटने के लोग अिस इंगामे से अशान्त होने के पहले सब काम पूरा हो जाय । असने दो आज्ञाों जारी की (१) पटने के लोगों के सभी हथिहार छिन लिओ नाये और ( ३ ) रात के नौ बजे के बाद कोी घर से बाहर न निकले । दूसरी आज्ञा से गुप्त समितियों के काम में बाधा पड़ने लगी; और शस्त्रास्त्रों का संग्रह करना कठिन हो गया। अबतक पटने के षडयंत्रकारी दानापुर से बलवे की सूचना पाने की राह देख रहे थे। किन्तु क्राति को खोद डालने का यह दमनचक्र जब शुरू हुआ, तब, अिस प्रकार रौधे जाने की अपेक्षा तुरन्त जोरदार बलवा करनाही अन्हों ने तय किया । ३ जुलाी को पीर अली नामक नेता के घर सब लोग अिकठे हुओ और अन्हों ने बलने की योजनाओं पक्की की। फिर कातिके झण्डे हाथ में लेकर क्राति के नारे लगाते सब लोग बाहर आये। लगभग २०० कातिवीर शहर से जुलूस से गुजरे और गिरजाघर पर चढानी की। कुछ सैनिकों के साथ लायल नामक अक गोरा अन को रोकने जब आगे बढा तब पीर अलीने असे गोलीसे झुडा दिया। और अन्य साथियों ने अस गारे की लाश की जितनी धज्जिया अडायीं, कि अस का हुलिया ही नष्ट हो गया । तब राजनिष्ठ । सिक्खों के साथ स्ट्रे चढ आया। असने कातिकारियों पर बडा जोरदार हमला किया । जन सिक्खोंने अपनी मातृभूमि के पेट में अपनी तलवार घोंपी और अस के रक्त से वे नहाये, तब शस्त्रास तथा अनुशासन में श्रेष्ठ अिस सेना के सामने बेचारे मुठीभर क्रांतिकारी क्या टिक सकते ! अंग्रेजोंने अक के बाद अक सभी नेताओं को पकड लिया । लायल का घातक पीर अली भी अन में था। पीर अली लखनवी था, किन्तु गत की वर्षों से पुस्तक विक्रेता का धंदा कर पटने में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुका था। जितनी पुस्तकें वह बेचता अन सब को पहले पढता, जिस से क्रातिकारी विचारधारा को पूर्णतया पी गया था । परावलंबित्व तथा पराधीनता से वह अब झुठा था। दिल्ली तथा लखन के क्रांतिकारियों से असका पत्रव्यवहार हमेशा होता रहता था। वह अपने जाज्वल्य देशाभिमान की दीक्षा दूसरों को दिया करता । धधे से पुस्तक विक्रेता होनेपर भी पटना के क्रांति नेताओं में असकी बडी प्रतिष्ठा थी। गुप्त