पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४१

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अध्याय २ रा] २९७ [हॅवलॉक बंगाल की खाडी भी, कमी युगों के बाद सही, पट जायगी; किन्तु मुंह बाये पड़ा यह कुऑ अितना खून पी जानेपर भी संसार की समाप्तितक सूखा और तृषित रहेगा। अिसी समय पांडू नदीपर भेजी हुश्री नानासाहब की सेना को हरा कर इवलॉक आगे बढ़ रहा था। जिस मुठभेड में नानासाहब के भाभी सेनापति चालासाहब पेशवा के कधे में गोली लगी, जिस से अन्हें कानपुर लौटना पड़ा। तुरन्त युद्धसमिति की बैठक बुलायी गयी; नानासाहब ने, आनेवाली स्थिति का सामना कैसे किया जाय अिस बारेमे सभी सदस्यों से, चर्चा की। दो प्रस्ताव रखे गये । बिना लढे कानपुर खाली कर दिया नाय; या अिस आक्रमण का तीखा प्रतिकार करें। काफी चर्चा होनेपर दूसरा प्रस्ताव सर्वसम्मति से मान्य हुआ । १० जुलाओ को अंग्रेजी सेना कानपुर के पास आ खडी हुी। अवतक अन्हें कानपुर के कुों की बात मालूम न हुी थी। व्हीलर का किला तो हाथसे निकल गया था, बीबीगढ को मुक्त करने का प्रण अन्होंने कर लिया था। और अिसी धुनमें धूप, कष्ट या झगडे की पर्वाह न की और जरा भी आराम न किया । जब कानपुर के बुर्ज दिखायी पडे, तब इवलॉक में, असकी मनशा पूरी होनेकी सम्भावना से, नूतन अत्साह का संचार हुआ । असने 'पांडे' की सेना की बातें जानने के लिअ जासूसी टोलियाँ भेजी। क्रांतिकारियोंने अपनी व्यूह रचना बहुत चतुरता से की थी । सारी अम्र रणमैदानमें गँवानेवाले अिस अंग्रेज योद्धा को मालूम हुआ कि क्रांतिकारियों में भी असाधारण युद्ध-तंत्र-विशारद हैं । असने अपने सभी सहायकों को बुलाया और असकी अपनी न्यूह रचना की रूपरेखा अपनी तलवारसे भूमिपर अंकित कर दिखायी। जब वह अपने लोगों को समझा रहा था, कि क्रांतिकारियों पर पीछेसे हमला करने की । अपेक्षा आगे से चढाी करनाही अच्छा है, तभी सफेद घोडेपर चढे नानासाहब यह हामी भरी-है; क्यों कि, अन्होंने जून और जुलाी में हुश्री कलों से संबंधित हर बातकी खूब खोजपूर्ण तहकिकात की थी 17-के और मॅलेसन कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड, २ पृ. २८७.