पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३४०

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अमिमलय] . २९६ [तीसरा खंड । बीबी की कोठी की प्रमुख बंदिपालिका बेगमसाहेबाने कानपुर के कसाभियोंको बुलाने कहार को भेजा। शाम को, कुछ वाधिक हाथमें पैनी नंगी तलवारें तथा बड़े बडे छुरे लेकर क्रूर मुद्रासे बीबीघरमें आये। शाम के झटपटे में वे आये और पूर्ण अंधेरा छा जाने के पहले बहर निकल गये। किन्तु अितने थोडे अरसेमें भी लाल लाल खूनका सैलाव--सा दीख पड़ा। • कसायी अंदर आये और अन्होंने छुरों और तलवारोंसे लगभग डेढ सौ स्त्रियों तथा बच्चों का सफाया कर डाला। सारा कमरा मेक रक्त-पोखर बना गया था, जिसमें मानवी मॉस की बोटीयाँ अतरा रही थीं। आते समय वधिक भूमिपर चलते आये किन्तु जाते समय खून के सोतमें पॉव भिगोकर अन्हे चलना पडा । अधमरों की चीखोंसे, मरने को होनेवालों की भीषण कराहों से, और , कंवल अपने नन्हे आकार के कारण अिस .कले आमसे बचे बच्चों के दयनीय आक्रदनोंसे अस दिन की रात आर्त विलाप कर रही थी। तडके, अन सब अभागे जीवों को बाहर ले जा कर पास के में धकेल दिया गया। अबतक लाशों के ढेर के नाचे दबे दो बच्चे, ढेर के हिलतेही, रेंगते हुओ बाहर आकर भागने लगे; किन्तु अक ही वार से अन्हे अस ढेर में मिला दिया गया। आजतक लोग कुों का पानी पीते आये थे किन्तु आज वह, कुआँ मानव रक्त को पी रहा था। फतहपुर के 'हिंदी' बालबच्चों की चीखे जिस तरह अग्रेजों ने आकाश को पहुंचायी, असी तरह प्रतिशोध और क्रोध से खौलते 'पाडे' लोगोंने गोरे बालबच्चों के शव ठेठ पाताल में गहरे गाड दिये । जिस तरह, दो वशोंमें सौ सालों तक जो पावना लेना था असे पूरी तरह अदा कर दिया। हिसाब चुकते । * कभी ___* सं. ४१. क्रूरता की कमाल, आनिर्वचनीय लज्जा आदि विशेषणों से यह पाशविक हत्याकाण्ड वर्णित है; किन्तु ये सब बहकी हुभी कल्पनाशक्ति की गढी बातें थीं, जिनपर बिना परख विश्वास किया गया; ( परिणामों का रंच भी) खयाल न करते हुमे वे फैलायीं गयीं। किसी का अंगच्छेद न हुआ; किसी की बेअिज्जती न हुी। सरकारी कर्मचारियोंने साफ साफ शब्दोंमें