पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३३४

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अग्निमलय ] २९० [ तीसरा खड सोल्जरों को लडने की हालत में रखा था ! १४ जुलाी की लडामी में तो अंग्रेजों के बुरे हाल हुभे; करें कि प्रसिद्ध योद्धा चेम्बरलेन मेक क्रांतिकारी की गोली से स्वर्ग सिधारा । "हमारे दल का महान् और अतिविख्यात योद्धा चेम्बरलेन ! सचमुच, वह दिन बडा असगुनी था, जिस दिन मिस वीर को प्राणघालक चोट लगने से छावनी में अठाकर ले जाना पडा " अिस भाषा में अंग्रेज मितिहासकार अपनी अस राष्ट्रीय हानि का करूणापूर्ण वर्णन करते हैं। हाँ, तो १५ जुलाी बीत गयी फिर भी दिल्ली के बुर्ज, सूरज की किरणों में नहा कर, अज्ज्वलित ध्वजों को अँचे कर संसार कोगरज कर कह रहे थे, 'दिल्ली आज स्वतंत्रता का निवास बना हुआ है ।। अन्त में रीडने त्यागपत्र दिया । दो सेनापति तो पहले ही मर चुके थे, अब तीसरा नौकरी से छूट कर बचेगा तो जीअगा। फिर भी अब तक दिल्ली का पतन नहीं होता! अलटे, क्रांतिकारियों के लगातार तथा भारी चोट करनेवाले हमलों से जान बचाना अंग्रेजों के लिओ दूभर होता जाता था। अब तो क्रांतिकारियों की संख्या २० हजार हो गयी थी । अिनसे कितने भी लोग काम आ जाय, अंग्रेजों का जिससे कोमी लाभ न था। किन्तु अनके थोडे भी लोग खेत रहे तो अंग्रेजों की संख्यापर निश्चित परिणाम होता । मिस से, अंग्रेजों ने मात्र बचाव की नीतिपर चलना तय किया । अकाध हमले में क्रांतिकारिया को हरा भी दिया जाय, तो अनकी कोभी खास हानि न होती, न अनके हमले बंद पडते । अलटे. अधिक निश्चय से तथा निर्भीक बनकर, शेखी बघारते- “देखो अंग्रेजों को पराजय के जितनी ही विजय काफी महँगी पडती है।" अिस से भारत के अन्य विभागों के अंग्रेज भी समाचारपत्रों में शिकायत करने लगे कि ये घेरा डालनेवाले ही बेचारे घेरे गये हैं।। असी बाँकी दशामें जब me सोल्जर जो देष रखते हैं, वह कभी कम नहीं हो सकता।-के और मॅलेसनकृत सिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. ४३८.