पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३०५

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अध्याय १० वॉ] २६३ [उपसंहार फिरसे प्राप्त की तब मूरोंकी उन्होने क्या गत की ? स्पेनवाले न हिंदी है, न एशियाई ! फिर जो मूर स्पेनमें लगभग पाच सदियोंसे अधिक समय टिके थे उनपर टूटकर, स्पेनवालोंने इनके स्त्री-पुरुष-बच्चोकी निर्दयतासे तथा अमानुष हत्या की, वह क्या केवल इसी लिए की मूर अन्य वशके थे? १८२१में इक्कीस सहस्र स्त्री-पुरुष-बालकोंकी हत्या भी यूनानने क्यो कर की ? युरोपवाले जिसे वद्य मानते हैं वह हेटेरिया नामक गुप्त सस्था इस हत्याका मण्डन कैसे करेगी ? यही कहेगी न ? कि यूनानमें तुर्कियोंकी जनसख्या देशमें रहे तो थोडी, किन्तु निकाल बाहर करने में प्रचड होनेसे लाचार होकर उन्हें कल्ल करनाही उस समय बुद्धिमानीकी तथा आवश्यक नीति थी! और भारतके लोगोने मी तो यही उत्तर दिया था न ?' सापको मार उसके पिल्लोकों छोड देना हो तो फिर सॉपको मारनेसे क्या लाभ ?' यही विचार यूनानियोंके मनमे आकर उन्होंने अपनी प्राकृतिक दया भावनाही को दबा दिया था। मतलब, सॉपको कुचलनेके सभी उपायोंका दोष, अन्तमे सॉप के अपने प्राणघालक विष पर आ पड़ता है। __ और, सचमुच, अपनेपर होनेवाले भयकर जुलमी अन्यायोका बदला लेनेकी प्राकृतिक प्रवृत्ति यदि मानवके हृदयमें सदा जागरित न रहती, तो सभी मानवी व्यवहारोंमे मानवके अंटरके 'पशु' ही को महान् स्थान प्राप्त हो जाता। अपराधको दण्ड देना, क्या, दण्ड विधानका एक महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं होता है ? इतिहासकी साख है, कि जब जब पराकाष्ठाको पहुँचे जुल्मों और अन्यायोके परिणाम स्वरूप मानवके अंतस्तलमे आत्यंतिक प्रतिशोधका भाव प्रचण्ड आवेगसे बेकाबू होकर भडक उठता है, तब तब राष्टके जीवन विकासमे, अन्य. प्रसगोमें अक्षम्य ठहरनेवाली आम हत्याएँ तथा अमानुष अत्याचार हो जाना, अनिवार्य होता है। इसीसे १८५७के भारतीय क्रातियुद्ध में चारपाच स्थानोंमें हुए हत्याकाण्डोंकी क्रूरतासे दॉतोंतले उँगली दबानेकी आवश्यकता नही है; . * स. ३७ । सर वि. रसेल-लदन टाइम्सके सवाददाता-की डायरी पृ. १६४.