पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२९२

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प्रस्फोट] २५० [द्वितीय खड रहा है; न किसीने उसे वंदना करनेको हाथ ऊँचा किया, न गर्दन झुकायी। ठीक है, वह ब्रिगेडियर साब है। अरे भई, किसने उसे ब्रिगेडियर बनाया ? फिरगियोंने न? प्रासाद-शिखरपर बैठ जानेसे क्या कौआ गरूड बन जाता है ? हाँ तो, ब्रिगेडियरके सामनेसे गुजर जाना; उसकी ओर झॉकना तक नहीं ! ग्वालियरकी सेनाके सिपाहियोंने ब्रिगेडियरको माना न ध्यान दिया, सीधे चल पडे | * फिर भी शामतक सब शान्त रहा और तब एक अगलेमें आग लगी दिखायी पडी। हॉ, बलवेका महूरत आ लगा है शायद १ तोपखानेवाले ! उठो। पैदल पलटनवाले । एक हाथमें जलती मशाल, दूसरेमे चमकती करवाल लेकर, सिंहगर्जना करते हुए दश दिशाओंको गूंजा दो । भारतीय को गले लगाओ; गोरेका गला घोटो। मारो फिरंगीको! तुम घरमे छिपते हो ? अच्छा, तो उस वरहीको जला दो। आगसे बचनेको बगलेसे कौन भागा? गोरा है ! उडा दो उसका सिर! खबरदार, मत मारो, रुक जाए; हम औरतोंपर हाथ नहीं उठाते ! + रातभर इसीतरह वह पैशाचिक नृत्य जारी रहा। ग्वालियर नगरहीमे केवल नही, शिंदेके राजमहलमें भी अंग्रेजोंका नामलेवा न रहना चाहिये। सभी गोरोंको शिदेके प्रदेशसे ठेट आगरे तक भगा दिया गया। गोग मेमोंको बदी बनाया गया। परायी स्त्रीसे बोलना अच्छा नहीं ! किन्तु वह देखो: एक मेम उधर धूपमें जल रही है ! पूछे तो!' क्यों मेम साहब ! यहाँकी धूप कैसी है ? बहुत कडी है न? और इस समय तो आप उसे औरही कडी महसूस करती होंगी? आप अपने ठढे देशमें रहती तो ऐसी विपत्तिमें क्यों कर फॅसती ?" इस 'शैतानी' सलाहको देते हुए सुनकर, वह दूसरा आदमी क्या कह रहा है ? " अजी, आपको आगरे पहुंचाना है क्या ? ओ हो। तुम्हारे आदमी तो कत्रके मारे गये है ! मैने कहा, आगरा अब दिल्लीके सम्राटकी छत्रछायामें है ? क्या, फिरभी आप वहाँ जाना चाहती है ?" और हास्यकी एक लहर उठी ! शिदे तो मूर्तिके समान जम गया था! ग्वालियरकी सेनाने विद्रोह किया; सिपाहियोंने गोरे अधि

  • श्रीमती कपलंड कृत 'नरेटिव्ह' + श्रीमती कूपलड कृत 'नेरेटिव्ह'