पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८८

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- २४६ प्रस्फोट] [द्वितीय खड । www.... . .. .marr . . amr धावा बोल, उन्हें भगा दिया और गॉव जीत लिया । क्रातिकारियोने अग्रेजोंकी पिछाडी तथा बीचके विभागपर एकसाथ चढाई की ! ज्योही गोरे हटने लगे त्योही क्रातिकारियोने अपना दबाव बढाया ! अंग्रेजी सेनामे गडबडी पडी! और अब लडनेका अर्थ सारी सेनाका सत्यानाश करना है, यह ताडकर सर हेन्रीने पीछेहटकी आज्ञा दी। इस पीछेहट में भी गोरोको बडी यत्रणाएँ सहनी पडी । क्यों कि, चिनहटमें अंग्रेजोको हराकर ही कातिकारियोने दम न लिया, उन्होने ताबडतोड गोरोंको खदेडना शुरू किया, 'जिससे अनुशासन टूट गया और गोरे तितर-बितर हो गये और जान बचाते हुए भाग खड़े हुए । हारी हुए अंग्रेज सेना लखनऊ की ओर भाग रही थी। ४०० गोरोसे १५० बिनहटमें मारे गये | हिदुस्थानी राजनिष्ठोंकी गिनतीसे क्या लाभ १ दो बडी तोपे तथा एक हाविट् झर खेतमें छोड अंग्रेज भागे, और साथ कानपुरके प्रतिशोधका विचार • वहीं छोड देना पडा । सर हेन्री, यह मार पडनेपर, रेसिडेन्सीम लौट आया; फिरभी क्रातिकारी उसका पीछा कर रहे थे। चिनहटकी लडाई तभी समाप्त हुई, जब बचे हुए अंग्रेज, सिक्ख और 'राजनिष्ट' सिपाही रेसिडेन्सीकी तोपोंकी छायामे दम लेने लगे। हॉ, किन्तु उस लडाईका प्रभाव कहाँ समाप्त हुआ था ? कातिकारियोंने माचीवन और रेसिडेन्सी दोनोंको घेर लिया। तब एकही स्थानका प्रतिकार पूरा बलवान करनेके हेतु सर हेन्रीने माचीभवन खाली करना तय किया। अनगिनत गोलाबारूदसे भरे वहाँके कोठारमे आग लगाकर सब गोरे रेसिडेन्सीमे,आ गये ! इस स्थानमे अनाज, शस्त्रास्त्र, गोलाबारूद आदि सामग्री घेरेके समयमै आवश्यकतासे अधिक थी। अब रेसिडेन्सीमें लगभग एक सहस्र गोरे सैनिक तथा ८०० हिंदी सिपाही थे। बाहर क्रातिकारियोकी असीम सेना खडी थी; उससे भिडनेकी सिद्धता अंग्रेजोंने की। चिनहटकी लडाईके बाद भी रेसिडेन्सी झुझानेका अग्रेज सेनापतिका निश्चय देखकर क्रांतिकारियोको भी तेहा आ गया। विदेशी तानागाही तथा, पराधीनताका सदाके लिये अन्त कर देनेके विचारसे वे क्रोधसे मनमें जलने लगे।