पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७१

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अध्याय ९ वॉ] २३१ -[अवध उदारता, कृतज्ञता आदि गुणोके आदर्श बने ये अवधके बडे बडे जमीदार राजपूत थे। अपने रानासे अंग्रेजोने नीच बर्ताव किया है इसका पता लगनेपर उनका राजपूती खून खौलने लगा। अवधपर दखल करनेके बाद अंग्रेजोन इन जमींदारोको नवी राजसत्ताकी सेवा करनेके लिए निमत्रित क्रिया । इन सैकड़ों स्वातन्यप्रेमी तथा तेजस्वी लोगोने उत्तरमे कहा था, 'हमने स्वराज्यका निमक खाया है ! परायोके दिये टुकडे चबानेको हम कभी न जायेंगे।' __ इस नये अवध प्रातपर सर हेन्री लॉरेन्सको नियुक्त किया गया। क्रातिका बीज पजामे दृढमूल होनेके पहलेही, जिसकी कूट-नीतिजता तथा सावधानीसे, विफल कर दिया गया, उस जॉन लॉरेन्सका यह बडा भाई था। जिसतरह पजाबके प्रधान कमिशनरने उस प्रातकी रक्षा की, उसी तरह, उन्ही उपायोंद्वारा अवधकी रक्षा उसका भाई करने लगा। हिंदुस्थानमे ब्रिटियोंकी सत्ता गहरी नीवपर खडी करनेमे लॉरेन्स परिवारने सबसे अधिक, निःसदेह, हाथ बॅटाया था। अवधमे पग धरतेही सर हेन्री लॉरेन्सने वहॉकी स्थितिका तुरन्त और पूरा आकलन किया; और दूसरे किसी भी अंग्रेजके पहले क्रांतिकी सम्भावनाका डर प्रथम प्रकट किया। सर हेन्रीने अवधकी राजधानी लखनऊहीमे अपना डेरा डाला। प्रारभम असनुष्ट जमींदारोंको मीठे वचनोंसे पुचकारकर वशम करनेकी नीति जारी की । लखनऊमे एक दरबार लगाया, उसमें मान-सम्मान, उपाधियाँ तथा पारितोषिक वितरण कर लोगोंको अपने लुप्त स्वराज्यको भुलानेके लिए उसने अनथक चेष्टाएँ की । हॉ, अशान्तिको दबानेके लिए इन -गान्तिमय उपायोंपर अवलवित न रह कर, साथ साथ उन योजना'ओंको बनाना जारी रखा जो जनताके विद्रोहके फूट पडतेही उसे दबानेमे सफल हो । क्यो कि, सर हेन्री लॉरेन्स उसके भूतपूर्व अधिकारियोंसे कुछ अच्छा मलेही दिखाई पडता, अवधके प्रजाजन अग्रेजोंके अच्छे तथा बुरे शासनसे पूरी तरह ऊब उठे थे। अब उनको तभी चैन होगी जब स्वराज्य प्राप्तकर वाजिदअलीगाहको अवधके सिंहासनपर फिरसे विराजमान देखे । अंग्रेजी पराधीनताकी श्रखलाओंको तोडकर भारतको स्वतत्र करनेकी. ही लगन लगी थी। आजतक उनका धर्म सिंहासनपर अधिष्ठित था; क्यों कि,