पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२६०

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प्रस्फोट] २२० [द्वितीय खंड बहस होनेपर तय हुआ कि उसी रातको गढी नानासाहत्रके सुपुर्द की जाय और पौ फटतेही अंग्रेजोंका पौरा वहॉसे निकल जाय । सधिसी शर्त मान्य हुई और दोनोंके हस्ताक्षरवाली प्रति लेकर टॉड (जो पहले नानाका रोडर रह चुका था) आया। नानासाहबने उसकी कुगल पूछकर अच्छा स्वागत किया। उस गामको अंग्रेजोंने हथियार डाले और सब कुछ नानासाहबके सुपुर्द कर दिया । तुरन्त दो अफसरों के साथ ब्रिगेडियर ज्वालाप्रसादने गढीमें अपना अड्डा जमा लिया। उसी रातको कानपुरके मॅजिस्ट्रेट हुलाससिंग तथा तात्या टोपेने मल्लाहोंको ४० किश्तियों तैयार रखने की आज्ञा दी। किश्तियोंका प्रबंध देखने हाथीपर जो अग्रेज आये थे उन्होंने किश्तियों वेडौल तथा आवश्यक सुविधाओंसे खाली होनेकी शिकायत की। तुरन्त सौ मजदूर लगाकर बॉसकी छतें और चन्दवे लगाकर बैठनेकी जगह ठीक कर दी गयी तथा आवश्यक खाद्य वस्तुओसे भरपूर कर दी गयीं। __इस तरह कानपुरसे निकल जानेकी अंग्रेजोंके लिए सिद्धता पूरी हुई। किन्तु, उस ओरसे वे कौन लोग आ रहे हैं ? जाने आनेवाले पर निगरानी अवश्य रखी जाय, नहीं तो आगेकी घटनाओका मर्म हम समझ नहीं पायेंगे। नानासाहबके कानपुरपर स्वाधीनताका झण्डा फहरानेके समाचार जब चारों ओर फैले, तो लडाके वीरोंका कानपुरकी ओर आनेमें एक तोता-सा बँध गया! हर स्थानसे तरुण राष्ट्रीय स्वयसैनिक कानपुर आ रहे थे। जो गॉव जवानोंको न भेज सका उसने धन भेजा। किन्तु हाय! केवल स्वयसैनिकों के झुण्डही वहाँ नहीं आ रहे थे। जो लोग अपने यत्नोंमे असफल रहे और जो अंग्रेजी पराधीनतासे ऊब उठे थे उन असहाय लोगोंके झुण्डके झुण्ड भी कानपुरको आ रहे थे । गत सप्ताहहीमें कागी और प्रयागके हजारों सिपाही,अग्रेजोंके उनके बालबच्चोपर किये ऋर अत्याचारोंके समाचार लेकर,आ पहुंचे थे। सैंकडों युवक-जिनके पिताओंको अंग्रेजोंने रोमन ८ और ९ के अंकोंकी आकृतियाँ बना कर फॉसी दिया था-वहाँ आ धमके थे। जिनकी औरतो तथा नन्हे मुन्नोंको भी नीलने जला डाला था, वे पति और पिता भी वहाँ आये थे। जिनकी लडकियों के बालों तथा कपडोमें आग लगाकर गोरे सोजीरोंने तालियाँ पीटी थीं, उनके जन्मदाता भी वहॉ आ पहुँचे