पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५१

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अध्याय ८ वॉ] २११ [कानपुर और झॉसी का गुण देखकर लज्जासे अपनी गर्दन नवानी ही चाहिये । बलवेके प्रसंगमे अंग्रेजोंके प्राणोंकी रक्षा करना, और बारह घटे पहले उन्हें खतरेकी पूर्वसूचना देना-इन दो बातोंको ध्यानमे रखकर यदि हम अब इन अन्तिम घटनाओंको जानेंगे तभी कानपुरकी स्थितिको ठीक तरह समझ पायेंगे। अंग्रेजोंको युद्धकी पूर्वसूचना देकर सूवेदार (अब 'कर्नेल' )टिकासिंग, सबेरेका सारा समय, गोलाबारूदके भडारमे जाकर अस्त्रशस्त्रोंका ठीक प्रबध करने तथा उन्हें मार्केके स्थानपर पहुँचानेमे मगन रहा | नदी तथा भूमिसे, अंग्रेजोंकी गढीकी दिशामे तोपोंके मोर्चे बाधे गये। यह योजना युद्धशास्त्रके अच्छे दॉवपेचोंकी थी। उस समय कानपुरमे बहुत गडबडी मची हुई थी। कोरी, जुलाहे, तलवारोंके कारीगर लुहार, हाटके लोग, मुसलमान और रोब-दाववाले चादीके वेपारी सबके सब हाथ लगे हथियारसे लैस होकर अग्रेजोंकी राह देख रहे थे । न्यायालय, कचहरियों नये पुराने अग्रेजी कारोबारके खत-पत्र सब जला दिये । गढीमे जो जा न सके उन अंग्रेजोंको कत्ल किया गया । अब दोपहर हो चली थी। १ बजे अग्रेजोंकी गढीको घेरनेका प्रारभ हुआ और शामको तोपे । चली, तब भिडन्त हो गयी। __ अग्रेजोंके पास आठ तोपे थीं, किलेमे गाडी हुई गोलाबारूदकी अनगिनत निधि भी थी । कातिकारियोंने गोलाबारूदका भण्डार हयियाकर बडी बडी तोपेमी हथिया ली थीं, जिससे उनके पास सामग्रीकी कमी न थी। सेनापति टिक्कासिगने पहलेही से तोपखानेका प्रबध बढिया कर रखा था। इन तोपोंने गढीकी इमारतोंको चकनाचूर कर दिया। ७ जूनको क्रातिकारियोंके तोपखानेने जब कुहराम मचा दिया, तब आजतक ऐसी दुर्दशाका परिचय न होनेवाले अग्रेजोंके बालबच्चे भयत्रस्त होकर तितर बितर भागने लगे। किन्तु अम्याससे, मौतका डर भी चला गया. सिरके ऊपरसे सरकनेवाले तोपके गोले गगनविहारी पछियोंके समान मामूलीसे मालूम होने लगे। चढाईके दो दिन बीते और गढीमें पानीकी कमी महसूस होने लगी । अदर केवल एकही कुऑ था। किन्तु अग्रेज सोजीरोंकी अपेक्षा क्रातिकारियोंका उसपर अधिक ध्यान था। घाम और ऊमस अति प्रखर थे, अग्रेजोंको धूपमें भुन जानेकी बारी आयी। सबके हृदय उस समय पत्थरसे कठोर बने थे।