पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४८

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प्रस्फोट] २०८ [द्वितीय खड । क्रांतिकी आहट तक अंग्रेजो तथा उनके नानकचद जैसे सहायक कुत्तोंको न मिले ? निदान जून ४ की रातमें सब कुछ भडक उठा। निश्चित कार्यक्रमके अनुसार रातको अंधेरेमें तीन 'फायर' हुए; और चीन्ही हुई इमारतोंमे आग लगायी गयी। रक्तपात, सहार, मौतका समय आ लगनेके ये चिन्ह थे। पहले पहल टिक्कासिंहने अपना घोडा दौडाया और पीछेसे हजारों घोडे उसके पीछे पुरजोशमें दौडने लगे। कुछ एकने अंग्रेजोंके घर जलाये: अस्तबलोंमें आग सुलगायी; कुछ सवार दूसरी टुकडियोंको गॉठने गये, जहाँ और कुछ सैनिक ध्वज पताका आदि सम्मान चिन्होंको छीनने दौड 'पडे । एक हिंदी सूवेदार मेजर इस सम्मान-चिन्होंका रक्षक था; जब वह कातिकारियोंसे विवाद करने लगा; तब, तलवारके एकही झटकेसे उसका -सिर तनसे अलग होकर, लाग धूलमें लोटने लगी! __ " पहली पैदल पलटनके सूवेदारसाहबको टिक्कासिंगका रामराम ! अब फिरगियोंके विरुद्ध सारा रिसाला उठा हो, तब पैदल सेना क्योकर देरी कर रही है ? " दो दौडते सवारोंने सह सदेशा पहुंचाया और समची 'पहली पैदल पलटन स्वदेश-स्वातत्यकी जय पुकारती हुई बाहर निकली। यह देखकर प्रमुख कर्नल एवर्टने फटकारा, "मेरे बच्चों, यह तुम क्या कर रहे हो ? अरे, तुम अपनी राजनिष्ठामें कालिख जो पोत रहे दो! ठहरो, भाईयो, ठहरो। किन्तु यह बकवाद सुनने किसे अवकाश था? एक क्षणमै रिसालेको मिलने के लिए सभी पैदल सैनिक अनुशासन'पूर्वक चलने लगे और फिर सारा सेना-सभार नवाबगजकी नानासाहबक्री छावनीकी ओर रणगीतोंके तालपर सचलन करता हुआ कूच करने लगा। नानासाहबके अपने सैनिक नवाबगजके राजकोषपर सिद्ध थे। अपने भाइयोसे वे गले मिले और गोलाबारूद्का सारा भडार क्रांतिकारियोंके सुपुर्द किया गया। नवाबगजमे वह बनाव बन रहा था, तब दो टुकडिया कानपुरही में थी। उनको तो अपने काबूमें रखा जाय इस हेतु अंग्रेजोंने उन्हे सचलन-भूमिपर जमा होनेकी आज्ञा दी। अंग्रेजोंके हाथमें तोपखाना था, जिससे अपने मुख्याधिकारियोंके साथ ये दोनों टुकडियाँ, अपने शस्त्रो समेत संचलन-भूमिमें रातभर राह देखती रहीं । पौ फटनेपर अंग्रेजोंको