पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३०

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वरुफोट ] ११२ [दुतीय खड पाप करे तो उसके जातवाले उसे कठोर दण्ड देते । " एक पाऊ रोटी- चालेने हमें गोरोको पाऊरोटी भेजो, तत्र उसके हार्थकि साथ उसकी नाकभी कटी दीख पडी; " यह समाचार २३ जूनका है । केवल रोटी वेचनेके अपराघमें किसानोंने वह दण्ड दिया था । जव इस तरह सशस्त्र वहिष्कार पुकारा गया तो फिर अंग्रेजोंकी दुरी दशाका क्या वर्णन करें? गोरोने इलाहाबादका किला लिया सही: किन्तु उन्हे इधरसे उधर हिलना अस म्भव-सा हो गया । उन्हें सवारी, गाडी, बैल, दवा दारुभी मिलना- दूभर होगया । बिमार सैनिकोंके लिए डोली तथा उसे उठानेवाले कहार न मिलते ये। कई जगहोंमे बीमार पडे हुए थे, उनकी आनै-चिल्ला- हट इतनी भयावनी थी कि कुछ अग्रेज स्त्रियों। उन्हें सुनकरही मर गयी। गरमी तो सायॉ सायॉ कर रही थी। अब कही अग्रेजोंके मस्क्तष्कमं त्रांतिकारियोका यह ढॉव आया कि जुनमें विद्रोह करनेसे मात्र गरभीहीसे गोरे मर जावेंगे । अपना सिर ठढें पानीमें डुबो रखनेमें हर गोरा सेनिक व्यस्त था । ऊपरसे अनाजदानेकी कमी थी ही ।उन्हे अनाजका एक कण भी बेचनेवाला देशद्रोही न मिलता था । " ठेठ आजतक हमें बिलकुल धोडे अनाजपर गुबारा करना पडा; कलके मेरे कलेवेसे एक कुर्ताभी अपना पेट न भर सकता। इलाहाबादकं एक अग्रेज अफसरका यह कथन है 1 इम तह गरमी और भूखके कारण अग्रेजोंके डेरेमें हैजा ऊट पडा; इतृ दुखसे छुटकारा पानेको अग्रेंज सोजोर हर दिन शराब पीकर बेहोश होने लगं । तत्र अनुशासन ढीला पड गया । ये पीक्कड सैनिक जब निलकी आज्ञा भी ठुकराने लगे तब नीलने कैनिगको लिखा ' इनयेंसे कुछ को मैं फीसो देने जा रहा हूँ," यह दशा बी इलाहाबादमं पडी गोरी थेनाकी । कानपुरको सहायता भंजनेके लिए लगातार त्त्र्य्र्य ( अबेट) सदेश जा रहे थे, फिर भी नील देने जंम सेनापति को भी दिनाक १ जोलाई- तक प्रयागहीमं सडना पडा । ध्यान रहे, नील तथा उसंक मातहत फ्यजिलियसूकी पलटनको मद्राससं खास बुलाया गया या। उम-समय मद्रासभं क्रातिकी एक छोटी लहर भी उठती तो अग्रेज उसका दवाब एक दिन भी सह न सकते । किन्तु, इलाहाबादके कट्टर हिंन्दी सनिकोंने अंग्रेजोको किलेम्ं बद रखनेका,चाहे,