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।) अध्याय ७ वॉ]
[काशी और प्रयाग
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क्रातिकार्यका संचालन करने लगे। थोडेही दिनोंमें राज्यप्रबध को ठीक कर दिया ! सम्राटके सूवेदारके नाते प्रांतमें होनेवाली हर घटनाका विवरण सम्राट के पास पहुंचानेकी प्रथा चाल की। __ सबसे पहले आवश्यकता थी प्रयागके किलेपर दखल करना । जनलर नीलके बनारस से प्रयागकी ओर चल देनेकी खबर पातेही मौलवी लियाकत अलीने सेनाको सुसंगठित कर किलेपर धावा बोल देनेकी सिद्धता की। इस समय भी यदि किलेके अंदर होनेवाले चार सौ सिक्खोंकी अक्ल ठिकाने आती, तब भी बिना एक गोली चलाये तोपों और गोलाबारूदके समेत किला क्रातिकारियोंके हाथ आता। जनरल नीलको दिनरात इस भयने अभिभूत किया था, जिससे वह गोरी पलटनोंको साथ लिये प्रयागको दौड पडा था; वह ११ जूनको वहा पहुँचा । घमासान लडाईके बाद १८ जूनको अपने राजनिष्ठ सिक्ख पिठठुओं समेत वह इलाहाबादमें पैठ पाया। बनारसके समान लडाईके बाद इलाहाबाद अंग्रेजोके हाथमें चला गया, फिरभी क्रांतिकारी पस्तहिम्मत न हुए। किलेमे शत्रुने उसका आसन जमा लिया देख, प्रातकी जनता औरही भडक उठी। हर देहातने प्रतिकारकी सिद्धता कर अपनी रक्षाका प्रबध कर लिया। इस तरह चिढे हुए लोगोंको रिश्वत देकर वश करनेका समय कबका समास हो चुका था। यह लडाई एक सिद्धातके लिए लडी जा रही थी। नीलने छोटेसे छोटे नेताको भी पकडा देनेके लिए हजारोंका इनाम घोषित किया, किन्तु दरिद्र खेतीहर भी उससे न ललचाये ! एक अंग्रेज अफसरने, केवल सिद्धान्तके लिए लडी जानेवाली गहरी लडाईकी इस उदात्ततापर, आश्चर्य प्रकट किया है। "मॅजिस्टेटने किसानोंकी जानमे होनेवाले एक मशहूर नेताका सिर ला देने के लिए एक हजार रुपयोंका इनाम घोषित किया। किन्तु हमसे (गोरोंसे ) उन्हें इतना कट्टर द्वेष था कि एक भी जीव उसे पकडा देनेको आगे न बदा! -* __ अपने नेताको पकडा देनेका हीन काम तो दूर, पैसे लेकर भी गोरोंको' कुछ सौदा देना बडा पाप माना जाता। और कही लालच में आकर ऐसा.

  • चार्लस बॉल कृत इंडियन म्यूटिनी खण्ड १