पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२१२

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प्रस्फोट] १७४ [द्वितीय खंड wroom mum roman से जुदा हुए कई बीन-दरिद्र हिंदु-मुसलमान मरदार और मराठों तथा सिक्खोंके लुटे हुए राजपरिवार कागीके हर मदिर तथा मस्जिद-दर्गाहमें अपनी आप बीती सुनाते बैठे नजर आते है। इसमें क्या आश्चर्य, कि ऐसी धर्मनगरीम स्वधर्मकी अवनति तथा स्वराज्यके अस्तके विषयम हिंदु-मुसलमानोंमे गहरी बहस छिडती होगी? इस प्रातका प्रमुख सनिककेन्द्र प्रयागके पास सिरकोलीमे था। यहाँ ३७ वी पैटल मेना, लुधियानेवाली सिक्ख कपनी तथा रिसालेकी एक पलटन थी। हॉ, तोपखाना मात्र गोरोंके अधीन था। स्वधर्म और स्वराज्यके लिए उत्थानकी चेतावनी सैनिकोंको भिन्न भिन्न तरीकोंसे दी गई थी। १८५७ के प्रारंभमे कागी की आम जनतामे भी कुछ विशेष अशान्ति धुधवाती होनेके लक्षण दीख पड़ने लगे । काशीका मुख्य कमिशनर टकर, न्यायाधीश गविन्स, मॅजिस्ट्रेट तथा अन्य नागरी अधिकारी और कॅ. ऑल्फर्टस् , कर्नल गॉर्डन तथा अन्य सैनिक अधिकारीगण पहलेही से काशीके अंग्रेजोंकी सुरक्षाम दत्तचित्त थे । क्यो कि, कई बार नागरिकोंकी अगान्ति प्रकट रूपसे उमड पडती और कभी कभी तो उसे काबूमें रखना कठिन हो जाता। पुरनिए तो प्रकट रूपसे और जोरसे यह प्रार्थना मदिरोंमें करते कि "हे भगवान् ! हमे इस फिरंगी राजके चुंगलसे छुडाओ।"* अन्य स्थानोमें क्या हो रहा है इसे जाननेके लिए काशीमें गुप्त टलोंका सगठन भी हुआ था। जब मई महीना आ लगा, तब छावनीमें प्रचार करनेमें कई मुसलमान लग गये । नगरकी दीवारोंपर तथा चौराहोंमें लोगोंको उत्तेजित करनेके लिए विज्ञापन भी चिपकाए जाते थे। आगे चलकर तो हिंदु धर्मोपदेशक अग्रेजोंके सत्या. नाशके लिए तथा स्वराज्यकी सिद्धिके लिए मदिरोंमें सामूहिक प्रार्थनाएँ भी करने लगे । इन्हीं दिनों अनाजकी दरें भी बहुत चढी और जब अंग्रेज अधिकारी आकर लोगोंको जतलाते कि, "राजनैतिक अर्थशास्त्र के हिसाबरे अब यदि अनाजके भाव बढ़ेंगे तो जथावद गल्लेके व्यापारी पहले मन जायेंगे" तो लोग उनके महपर साफ कहते, "इस महंगाई का एक

  • रिपोर्ट ऑफ दि जॉइट मॅजिस्ट्रेट श्री. टेलर । + रेड पॅम्पलेट