पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०६

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प्रस्फोट] १६८ . [द्वितीय खर ध्यक्ष इतने लोग थे। अभी कलही राजनिष्ठ खान बहादुर खॉ एक माननीय मित्रकी हैसियत अभियुक्तोकी कुसीसे कुसी सटाकर बैठा था: आज वह सिंहासनपर अधिष्ठित है तो दूसरे अपराधी बंटीके कटघरेमे खडे थे! पचोंने अपथ ली और, सदाके जैसे, फैसला देनेको बैठ गये। अभियुक्तोंको राजद्रोहसे सबधित कई अपराधोंके लिए दोषी ठहराया गया और सबको फॉसी का दण्ड दिया गया। इनसे छः अपराधियोको तो वहीं फॉसीपर लटकाया गया। रुहेलखण्डका कमिश्नर अपनी जान बचानेके लिए भाग गया था, उसे मरा या जीवित पकडने के लिए एक सहस्त्र मुहरोंका पारितोपिक खान बहादुर खॉन घोपित किया। इस तरह, अग्रेजी खूनसे अपना मिहासन पक्काकर रुहेलखण्ड स्वतत्र हो जाने का संदेश लेकर शामके पहले दिल्लीके राजदूत चल पडे । __ रुहेलखण्डके स्वतत्र होनेकी घोषणा कोई योही डीग नहीं मारी गयी थी। बरेलीके तोपची जिस समय अंग्रेजी शासनका कचबर निकाल रहे थे उसी ममय शहाजहाँपुरमें भी अंग्रेजी लह सीचा जा रहा था। निश्चित कार्यक्रमके अनुसार ३१ मई के सूरजको साक्षी कर शहाजहाँपुर स्वतंत्र हो गया था। बरेलीके उत्तर-पच्छिमम ४८ मीलोके फासलेपर मुरादाबाद है । यहाँ २९ वीं पैटल पलटन तथा देशी तोपखानेकी आधी पलटन छावनीमे थी! मेरठकी खबर मिलनेपर प्रथम बार यहाँके सैनिकोकी 'राजनिष्ठा की कसौटीका समय आया था। १८ मईको, मेरठके कुछ सिपाही मुरादाबाद के पास आ रहनेका समाचार गोरे अफसरोंको मिला । तब, २९ वीं पलटनको आज्ञा हुई कि मेरठवालोपर हमला किया जाय । आजाके अनुसार जगलोम सोये मेरठवाले कातिकारियोंपर ये सिपाही टूट पडे । किन्तु इस जोरदार हमलेकी पर्वाह न करते हुए सबके सब वहाँसे छटक गये। रात तो कालेकलूटे अधकारसे व्याप्त थी; तब अग्रेज अफसरोने भी माना कि सब ओरसे धेरे जानेपर भी केवल रातके अधेरेके कारणही क्रातिकारी छटक सके। किन्तु बादमे पता चला कि हमला करनेका केवल अभिनय किया गया था और सबसे विशेष बात तो यह थी कि मेरठवाले क्रातिकारी असलमें मुरादाबादकी छावनीहीमें चुपचाप सोये हुए थे। हॉ, २९ वीं पलटनने पूर्ण राजनिष्ठासे