पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९३

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अध्याय ४ था] १५७ [विष्कम तथा पजाब-काण्ड MAMMAR क्रातिके ज्वार में भी हो सकती है, फिर भी आगे बढे कदम' उस अनपेमित स्थितिपर सवार हो, लगातार कदम कदम बढाये जाओ। क्राति एक अजीब पछी है । जिस स्थानमें वह लम्बे अरसेसे बद रहा हो, वहॉसे छूट जानेपर अपने मुकाम पर पहुँचनेके पहले, कुछ समयतक आकाशमे चक्कर काटना उसके लिए आवश्यक होता है। इस पछीके परोंपर बैठकर जिसे अपना मन्तव्य पूरा करना हो असे अपना आसन इस पछी की पीठपर पक्का जमा लेनेकी सावधानी रखनी चाहिये। क्यो कि पहला मुक्त चक्कर काटनेपर जब उसकी पॉखे अपनी स्वाभाविक गतिपर स्थिर हो जाती है तब वही उनकी गतिका नियंत्रण कर सकता है, जिसने अपना आसन दृढ़ जमा रखा हो । मेरठवालोंने भलेही इसे समयसे पहले पिजडेसे मुक्त कर दिया था किन्तु इससे कातिके प्रणेता जरा भी डिगे नहीं थे । हाँ, तो इतिहास-देवता ! तुमही बताओ कि नानासाहब, लखनऊ का मौलवी, झॉसीवाली तथा अन्य महान् वीर योद्धा इस गरुडपक्षी की पीठपर इतना दृढ आसन असाधारण जीवटके साथ कैसे जमा सके ? और इतिहासदेवता, यह भी बताते न भूलना कि इन वीरोंके समान अन्य भारतीय लोगोने इस पछीको कसकर न पकडनेसे वह छटक कर कैसे आकाशमे चला गया! पूर्वार्धमे हमारे साथ रहो और उनके उज्ज्वल यशके गीत गाओः इसी तरह उत्तरार्ध म भी आओ और हमारे साथ, इतिहास-देवता, तुम भी ऑसू बहाओ !!