पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८६

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प्रस्फोट] [द्वितीय खंड - ऐसे मामूली लोगोंकी हत्या करनेका अवकाश जालदरके सिपाहियोंके पास था ही कहाँ! दिल्लीपर नये फहराये स्वातव्यके झण्डेपर अंग्रेजी तोपें निशाना साधे खडी होनेसे हरएक दिल्ली जानेको छटपा रहा था। जब अॅडज्युटट बॉगशॉने अकारण मुँह चलाया तब एक सवार दौड आया और उसने उसे गोलीसे उड़ा दिया। अंग्रेजोका अन्ततक सैनिकोंपर भरोसा था और अपने प्रांताधिपतिको उनके शस्त्र डलवानेकी आवश्यकता न होनेकी बात भी लिख भेजी थी। और यह विश्वास उचित भी था। क्यो कि, सिपाहियोंने कत्ले आम करने का तो टालही दिया, साथ साथ जो अंग्रेज अबतक वहाँसे भाग न सके थे उन्हें भी न छेडा। इस तरह जालढरकी सेनाने अपना कार्यक्रम सुयोग्य रीतिसे पूरा किया। जिन अंग्रेज अफसरोने उनका भरोसा किया था उनके प्राणोंको कोई धक्का नहीं पहुंचाया गया। इस तरह अपनी सभ्यता का सैनिकोंने परिचय दिया । यद्यपि सरकार

  • अंग्रेजोंने एक कल्पित अत्याचारकी कहानी गढकर उसे 'कलकत्तेकी काली कोठरी' (ब्लॅक होल) का नाम दिया है और इसपर विश्वास कर भोला ससार अंग्रेजोंके कुटिल मस्तिष्ककी इस उपजपर मिराज उद्दवलाको

शाप देता रहता है। हा, एक काली कोठरीकी सच्ची कहानी सुनकर आपके ' काटो तो खून नहीं वाली दशा होगी और वह भी उस दुष्टके शब्दोमे है जिसने उसका आविष्कार किया। "हथियार डालने पडेंगे इस भयसे भागनेवाले कुछ सिपाही, जो अंग्रेजोंके निशानेसे बचकर भागे थे, पजाबमें अजनालेके पास एक टापूमें छिपे हुए थे। इन २८२ अभागोंको पकडकर श्री. कूपर अजनाले ले आया। अब इनका क्या करें, उसके सामने यह प्रश्न था। उनका न्याय करनेके लिए उनको केन्द्र में पहुँचाने के साधन उसके पास कहाँ थे ? उसने स्वयं सबको देहान्तका दण्ड दे दिया होता तो अन्य पलटने तथा विद्रोही क्रातिकारियोंपर आतकछा जाता और आगामी रक्तपात टल जाता, इसलिए 'एक बडे दायित्वको उठा लेनेका ज्ञान उसे होते हुए भी उसने सबको कत्ल करनेका फैसला कर डाला। उसके अनुसार दूसरे दिन सवेरे दस दसके जत्थेमें बंदियोंको खडाकर सिक्खोद्वारा 'उनपर गोलिया चलायीं। इस तरह २१६का तो काम तमाम हो गया ।