पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१८२

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प्रस्फोट] । .१४६ [द्वितीय खंड और निकल्सनने २१ मईको गोरी पलटनके पहरेमें इन हिंदी सिपाहियोंको खडाकर शस्त्र रख देनेको कहा। इस अचानक अडचनमें फंस जानेके कारण सैनिकोंने चुपचाप हथियार डाल दिये। उनके अफसर इस अकारण अत्याचारको चुपचाप देखना सहन न कर सके। उन्होंने भी अपने हथियार तथा अपने तमगे और फीतें फेंक दी और सरकारको गालिया देते हुए सिपाहियोंके साथ हो गये! पेशावरकी पलटनके हथियार डलवानेपर होतीमर्दानकी ५५ वीं पलटनपर यही प्रयोग करनेका मौका अग्रेजोंके हाथ लगा। पजाबके प्राताधिकारी पूरी तरह जान गये थे कि यह पलटन क्रातिदलके फंदेमें फंस चुकी थी। किन्तु स्थानीय सेनाधिकारी स्पाटिस्खुड सरकारी सदेहको ठीक न मानता था। वह आग्रहसे जताता कि उसके सिपाही कभी विद्रोह न करेंगे। किन्तु, तिसपर भी, सरकारने सैनिकोंको निःशस्त्र बनानेके लिए उसे । टवाया। कर्नल स्पाटिस्वुड इससे बडा चिढ गया; और जब मई २४ को सैनिकोंके नेताओंने उसे पूछा कि " पेशावरसे गोरी पलटन हमपर चढ कर आ रही है क्या ?' तब उसने यों ही अगड बगडं उत्तर दिया जिससे सैनिक कुछ नाराजसे हुए और लौट पडे । पेशावरका दृश्य दुहरानेके लिए, इन सिपाहियोंके हथियार डलवानेके लिए, सचमुच पेशावरसे एक गोरी पलटन चल पडी थी। सिपाहियोंकी मानहानिका यह दुष्ट और क्षोभकारी प्रसग देखना पसद न होनेसे कर्नल स्पाटिखुडने अपने कमरेमें जाकर आत्महत्या कर ली ! इसकी खबर पहुँचतेही ५५ वीं पलटनने सरकारी खजानेपर हमलाकर अपने शस्त्र और झण्डे उठाये, और पैसा लूट लिया तथा पराधीनताके बानेको लाथसे ठुकराकर दिल्लीके रास्ते चल पंडे । किन्तु दिल्ली पास थोडेही था! गोरे सैनिकोंकी नाकाबदीको तोडते हुए, पूरा , पजाब रौदते हुए चले जाना था। साथ एक अंग्रेजी पलटन उनका पीछा करती थी, सो अलग! इस दशामें विजयकी आशा समात मानकर वे आपसमें कहने लगे 'पेशावरके सैनिकोंके समान उन्होंने भी हथियार रख दिये होते तो अच्छा होता ।' किन्तु सलाह हुई कि पराधीनताकी जंजीरसे जकडे रहनेकी अपेक्षा फॉसीकी रस्सी गर्दनमें कस नाना अंच्छा है। फिर यह नारा लगाते हुए कि, 'हम लडते लडते मरेंगे' पीछा करने